गोरखपुर की ऐतिहासिक ईदगाहें जहां बंटता है खुदा का फज्ल
शहर की ऐतिहासिक ईदगाहेंए जहां बंटता है खुदा का फज्ल
गोरखपुर। शहर की ईदगाहे ऐतिहासिक है। जहां ईद व ईदुलअज्हा के दिन खुदा का फज्ल बंदों पर खास होता है। ईद में चंद दिनें बचे है। ईदगाहों में तैयारी जोर.शोर से चल रही है। रंग रोगनए साफ सफाई के लिए मजदूर लगे हुये है। मुंशी प्रेमचन्द की कालजयी रचना ईदगाह सऽाी के जेहन में महफूज है। यह कहानी प्रेमचन्द ने ईदगाह मुबारक खां शहीद के जेरे नजर लिखी। बेहितहाता स्थित मुंशी प्रेमचन्द पार्क जहां पर प्रेमचन्द निवास करते थे। वहीं सामने ईदगाह मुबारक खां शहीद स्थित है। यहीं से उन्हें ईदगाह कहानी लिखने की प्रेरणा मिली। यहीं से उन्हें हामिद पात्र मिला जो अपनी दादी के लिये लोहे का चिमटा ले जाता है। एक बार कहानी पढ़ लेंगे तो ऽाावनात्मक रुप से आपका जुड़ाव उन पात्रों से हो जायेगा जिन्हें प्रेमचन्द ने अपने कहानी में रखा है। इस सब कहने का हासिल शहर की ईदगाहों से आपको रूबरू कराना है। पाक रमजान के माह में आप शहर की ईदगाहों के बारे में जानिए। साल में दो बार यहां पर कसीर तादाद में लोगों का जमवाड़ा होता है। लोग शुक्रें खुदा करते है। एक दूसरे से गले मिलते है। हाथ मिलाते है। गिलवे शिकवें ऽाूल कर एक दूसरे को बधाई देते है। इसमें गरीब ऽाी होते है अमीर ऽाी। बुजुर्गए युवा ऽाी बच्चे ऽाी। मौका रहता है खुदा का शुक्र अदा करते हुये खुशियां मनाने का। यह ईदगाहें इस शेर का चरितार्थ है कि एक सफ में खड़े हो गये महमूद अयाज न कोई बंदा रहा न कोई बंदा नवाज। यह ईदगाहें मुस्लिमों के दो सबसे बड़े त्यौहारों ईद और ईदुलअज्हा की खुशी मनाने के लिए है। यहीं पर दो रकाअत नमाज अदा कर बंदे खुदा का शुक्र अदा करते है और खुशियों मनाते है। इस वक्त शहर में छह ईदगाहें है। जिसमें ईदगाह मुबारक खां शहीदए ईदगाह सेहरा बाले का मैदानए ईदगाह इमामबाड़ा स्टेटए ईदगाह बेनीगंजए ईदगाह चिलमापुरए ईदगाह पुलिस लाइन शामिल है। इसके अलावा शहर में मौजूद 55 या 56 मस्जिदों में ऽाी ईद व ईदुल अज्हा की नमाज अदा होती है।
ईदगाह मुबारक खां शहीद शहर की सबसे पुरानी ईदगाह है। हजरत मुबारक खां शहीद रहमतुल्लाह अलैह दरगाह मुतवल्ली मंजूर आलम ने बताया कि दरगाह के करीब इसका निमार्ण करीब सात सौ साल पहले किया गया। यहां पर करीब पांच से छह हजार नमाजी एक साथ नमाज अदा करते है। इस ईदगाह का क्षेत्रफल 29 डिस्मिल है। ईद व ईदुलअज्हा के दिन इतने नमाजी इकट्ठे होते है कि ईदगाह से लगायत सड़के खाली मैदान ऽाी ऽार जाते है। कई सालों से यहां पर इमाम व खतीब की जिम्मेदारी हजरत मौलान फैजुल्लाह कादरी करते आ रहे है। इसके अलावा ईदगाह सेहरा बाले का मैदान की तामीर इस्लाम हाशमी के मुताबिक 1035 ईसवीं में हुई। इसका क्षेत्रफल करीब साढे“ चार एकड़ में फैला हुआ है। यहां के इमाम व खतीब का काम हजरत मौलाना अब्दुलक हक है। यह शहर की सबसे बड़ी ईदगाह है। इसके अलावा ईदगाह इमामबाड़ा स्टेट पुरानी ईदगाहों में शुमार होता है। इमामबाड़ा स्टेट
कि इस ईदगाह की तामीर नवाब आसिफुद्दौला के जमाने में हुई। इस ईद की तामीर हजरत रौशन अली शाह रहमतुल्लाह अलैह ने करीब 310 पहले करवायी थी। इसका फैलाव एक एकड़ में है। यहां के इमाम व खतीब मौलाना मुफ्ती मतीउर्रहमान है। इसके अलावा ईदगाह बेनीगंज ऽाी पुरानी ईदगाह में शुमार है। यहां पर हकीम जुनैद आलम नदवी इमामत व खतीब का काम अंजाम देते है। ईदगाह चिलमापुर में इमाम व खतीब मौलाना मुफ्ती वलीउल्लाह है। ईदगाह पुलिस लाइन में इमामत व खिताब हजरत हाफिज व कारी मोहम्मद साबिर का होता है।
मुफ्ती मौलाना अख्तर हुसैन अजहर मन्नानी ने बताया कि ईदगाह का अर्थ होता है खुशी की जगह या खुशी का वक्त। यह ऐसी जगह है जहां पर बंदा दो रकाअत नमाज पढ़कर खुदा का शुक्र अदा करते है। जब बंदा 29 दिन या 30 दिन का रोजा पूरा कर लेता है तो अल्लाह तआला उसे खुशी मनाने का हुक्म देता है। रोजा 2 हिजरी में फर्ज हुआ है। पैगम्बर मोहम्मद साहब 53 साल की उम्र में मक्का से हिजरत करके मदीना आ गये तो 2 हिजरी को रोजा फर्ज हुआ। कुरआन शरीफ के दूसरे पारे में छठें रूकू में ईद की खुशी मनाने का हुक्म नाजिल हुआ। पैगम्बर साहब आबादी से दूर अपने सहाबा के साथ ईद की नमाज अदा की। ईदगाह में ईद की नमाज अदा करना पैगम्बर साहब की सुन्नत है। ईद की मुस्तहबात में यह चीजें है कि ईदगाह जल्दी जाना। ईदगाह पैदल जाना। ईदगाह में एक रास्ते से जाने दूसरे रास्ते से वापस आना। जाते वक्त तक्बीरे तश्रीक पढना। ईद की नमाज के लिए जाने के लिए कुछ मीठा खा कर जाना मुस्तहब है।
दरगाह के पास दिलकश नजारा
कि इस ईदगाह की तामीर नवाब आसिफुद्दौला के जमाने में हुई। इस ईद की तामीर हजरत रौशन अली शाह रहमतुल्लाह अलैह ने करीब 310 पहले करवायी थी। इसका फैलाव एक एकड़ में है। यहां के इमाम व खतीब मौलाना मुफ्ती मतीउर्रहमान है। इसके अलावा ईदगाह बेनीगंज ऽाी पुरानी ईदगाह में शुमार है। यहां पर हकीम जुनैद आलम नदवी इमामत व खतीब का काम अंजाम देते है। ईदगाह चिलमापुर में इमाम व खतीब मौलाना मुफ्ती वलीउल्लाह है। ईदगाह पुलिस लाइन में इमामत व खिताब हजरत हाफिज व कारी मोहम्मद साबिर का होता है।
मुफ्ती मौलाना अख्तर हुसैन अजहर मन्नानी ने बताया कि ईदगाह का अर्थ होता है खुशी की जगह या खुशी का वक्त। यह ऐसी जगह है जहां पर बंदा दो रकाअत नमाज पढ़कर खुदा का शुक्र अदा करते है। जब बंदा 29 दिन या 30 दिन का रोजा पूरा कर लेता है तो अल्लाह तआला उसे खुशी मनाने का हुक्म देता है। रोजा 2 हिजरी में फर्ज हुआ है। पैगम्बर मोहम्मद साहब 53 साल की उम्र में मक्का से हिजरत करके मदीना आ गये तो 2 हिजरी को रोजा फर्ज हुआ। कुरआन शरीफ के दूसरे पारे में छठें रूकू में ईद की खुशी मनाने का हुक्म नाजिल हुआ। पैगम्बर साहब आबादी से दूर अपने सहाबा के साथ ईद की नमाज अदा की। ईदगाह में ईद की नमाज अदा करना पैगम्बर साहब की सुन्नत है। ईद की मुस्तहबात में यह चीजें है कि ईदगाह जल्दी जाना। ईदगाह पैदल जाना। ईदगाह में एक रास्ते से जाने दूसरे रास्ते से वापस आना। जाते वक्त तक्बीरे तश्रीक पढना। ईद की नमाज के लिए जाने के लिए कुछ मीठा खा कर जाना मुस्तहब है।
दरगाह के पास दिलकश नजारा
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