
इस्लाम धर्म के दूसरे खलीफा जिनके तकवा परेहजगारी का यह आलम था कि ईद के दिन जारों कतार रो रहे है।
ईद क दिन लोग काशान-ए-खिलाफत पर हाजिर हुए तो क्या देखा कि आप हजरत उमर दरवाजा बन्द करके जारो कतार रो रहे है। लोगों न हैरान होकर तअज्जूब से अर्ज किया, या अमीरूल मोमिनीन! आज तो ईद का दिन है। आज तो शादमानी मुसर्रत और खुशाी मनाने का दिन है। ये खुशी की जगह रोना कैसा? आप ने आंसू पेांछते हुए फरमाया ऐ लोगों! ये ईद का दिन भी है और वईद का दिन भी है। आज जिस के नमाज रोजा मकबूल हो गए बिला शुब्ह उस के लिए आज ईद का दिन है। लेकिन आज जिस की नमाज रोजा को मरदूह करके उसके मुहॅं पर मार दिया गया हो उस के लिए तो आज वईद ही का दिन है। और मैं तो इस खौफ से रो रहा हूॅं कि आह! यानी मुझे ये मालूम नहीं कि मैं मकबूल हुआ हॅंूं या रद्द कर दिया गया हॅंू।
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