

हदीस में है कि जब ईदुल फित्र की मुबारक रात तशरीफ लाती है तो इसे ‘लैलतुल जाइजा’ यानी इनआम की रात के नाम से पुकारा जाता है। नबी ने फरमाया रमजान शरीफ के मुबारक महीने के मुतअल्लिक इस महीने का पहला अशरा रहमत, दूसरा अशरा मग्फिरत, तीसरा अशरा जहन्नम से आजादी का है। मालूम हुआ कि ये महीना रहमतो, मगाफिरत और दोजख से आजादी का महीना है। लिहाजा इस रहमत, मगफिरत और दोजख से आजादी के इनआमात की खुशी में हमें ईद सईद की खुशी मनाने का मौका मिला। ईदुल फित्र के दिन खुशी का इजहार करना सुन्नत है। जब ईद की सुब्ह होती है तो अल्लाह अपने मासूम फरिशतों को तमाम शहरों में भेजता है।चुनाॅंचे वो फरिशतें जमीन पर तशरीफ लाकर सब गलियों और राहों के सिरों पर खड़े हो जाते है। ओर इस तरह निदा देते है ऐ उम्मते मुहम्मद उस खुदा की बारगाह की तरफ चलो। जो बहुत ही ज्यादा अता करने वाला और बड़े से बड़ा गुनाह माफ फरमाने वाला है। खुदा फरमाता है ऐ मेरे बन्दों ! मांगों! क्या मांगते हो? मेरी इज्जत व जलाल की कसम! आज के रोज इस नमाजे ईद के इज्तिमाअ में अपनी आखिरत के बारे में जो कुछ सवाल करोगे वो पूरा करूंगा और जो कुछ दुनिया के बारे में माॅंगेागे उसमें तुम्हारी भलाई की तरफ नजर फरमाऊॅं्रगा। मेरी इज्जत की कसम ! जब तक तुम मेरा लिहाज रखोगे मैं भी तुम्हारी खताओं पर पर्दा पोशी फरमाता रहूंॅगा। मेरी इज्जत जलाल की कसम! मैं तुम्हें हद से बढ़ने वाली यानी मुजरिमों के साथ रूसवा न करूॅंगा। बस अपने घरों की तरफ मगफिरत याफ्ता लौट जाओ। तुम ने मुझे राजी कर दिया और मैं भी तुम से राजी हो गया। हदीस में है कि जिसने ईदैन की रात यानी शबे ईदुल फित्र और शबे ईदुल अज्हा़ तलबे सवाब के लिए कियाम किया, उस दिन उस का दिल नहीं मरेगा, जिस दिन लोगों के दिल मर जायेंगे। नबी ने फरमाया कि ईद तो दरअसल उन खुशबख़्त मुसलमानेां के लिए है जिन्होंने माहे मोहतरम रमजानुल मुबारक को रोजों,नमाजों, और दीगर इबादतों में गुजारा। तो ये ईद उन के लिए अल्लाह की तरफ से मजदूरी मिलने का दिन है।
हदीस में आया है कि नबी ईदुलफित्र के दिन कुछ खाकर नमाज के लिए तशरीफ ले जाते थे। ईद के दिन हजामत बनवाना, नाखुन तरशवाना, गुस्ल करना, मिस्वाक करना, अच्छे कपड़े पहनना, नए हों तो नए वरना धुले हुए। खुश्बु लगाना, अंगूठी पहनना(चांदी की सिर्फ साढ़े चार माशा) की। नमाजे फज्र मस्जिदे मुहल्ला में पढ़ना। ईदुल फित्रकी नमाज को जाने से पहले चन्द खजूरें खा लेनां। खजूर न हो तो मीठी चीज खा लेना। नमाजे ईद ईदगाह में अदा करना। ईदगाह पैदल जाना अफजल है और वापसी में सुवारी पर आने से हरज नहीं। नमाजे ईद के लिए एक रास्ते से जाना और दूसरे रास्ते से वापस आनां ईद की नमाज से पहले सदकए फित्र अदा करना। कसरत से सदका देना। ईदगाह का इत्मिनान वकार और नीची निगाह किए जाना। आपस में मुबारक बाद देना। बाद नमाजे ईद मुसाफह यानि हाथ मिलाना और मुआनका यानि गले मिलना।
तेेरी जबकि दीद होगी जभी मेरी ईद होगी।
मेरे ख्वाब में तुम आना मदीनी मदीने वाले।।
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