
अमीरूल मोमिनीन हजरते उमर बिन अब्दुल अजी़ज की खिदमत में ईद से एक दिन कब्ल आप की बच्चियाॅं हाजिर हुई और बोली ‘‘ बाबा जान कल ईद के दिन हम कौन से कपड़े पहनेंगी?’’ फरमाया ‘ यही कपड़े जो तुम ने पहने रखे हैं इन्हें आज धो लो और कल पहन लेना।’’
‘‘नहीं बाबा जान! आप हमें नए कपड़े बनवा दें।’’ बच्चियों ने जिद करते हुए कहा।
आप ने फरमाया। मेरी बच्चियों! ईद का दिन अल्लाह की इबादत करने और उसका शुक्र बजा लाने का दिन है नए कपड़े पहनना जरूरी तो नहीं।
‘‘ बाबा जान! आप का फरमान बेशक सही और दुरूस्त है लेकिन हमारी सहेलियाॅं और दूसरी लड़कियाॅं हमें ताने देंगी कि तुम अमीरूल मोमिनीन की लड़कियाॅं हो और वही पुराने कपड़े पहन रखे।’’
बच्चियों की बातें सुनकर अमीरूल मोमिनीन का दिल भी भर आया। आप ने ख़ाजिन को बुलाकर फरमाया मुझे मेरी एक माह की तनख्वाह पेशगी लादो। खाजिन ने अर्ज किया कि हुजूर क्या आप को यकीन है कि आप एक माह तक जिन्दा रहेंगे? आप ने फरमाया तूने बेशक उम्दा और सही बात कही। खाजिन चला गया। आप ने बच्चियों से फरमाया प्यारी बच्चियों! अल्लाह व रसूल की रिजा पर अपनी ख्वाहिशात का कुरबान कर दो। कोई शख्स उस वक्त जन्नत का मुस्तहिक नहीं बन सकता। जब तक वो कुछ कुरबानी न दे।
गुजश्ता दोनों हिकायत से हमें यही दर्स मिला कि उजले कपड़े पहन लेने का नाम ईद नहीं है ।रंग बिरंगे कपड़े पहने बगैर भी ईद मनाई जा सकती है। हजरते अमीरूल मोमिनीन किसा कदर गरीब व मिसकीन खलीफा थे। इतनी बड़ी सल्तनत के हाकिम होने के बावजूद आप ने कोई रकम जमा न की थीं। आप के खाजिन भी किस कदर दियानत दार थें।
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