
गोरखपुर..रमजान के मुबारक दिन और रात अब आखिर दौर पर है. बंदे रब को राजी करने के लिए इबादत में लगे हुए है. एतकाफ और लैलतुल कद्र के फजायल के चर्चे जबान पर हैं। हम सब रोजे से हैं अल्लाह की दी हुई हलाल रोजी से भी
हाथ खींच लिया है इन चंद घंटों के लिए जो सुबह सादिक से लेकर गुरूब आफताब तक ही महदूद हैं। यह तो उमूमी फजा है रोजे और रमजान
की लेकिन जिन बातौफीक लोगों को
तौफीक मिली है और उन्होंने कुछ
पहले ही से इस मुबारक महीने के
इस्तकबाल के लिए तैयारी कर रखी है
उन पर कुछ और ही कैफियत तारी है।
जबाने हर वक्त महबूबे हकीकी के
जिक्र व याद से तर आंखें अपनी कोताहियाँ और जिंदगी के बेसूद बल्कि नाफरमानी में गुजरे हुए लम्हात याद करके भीगी भीगी रहती हैं। रात
की तंहाइयों में होंट थरथरा उठते हैं। इस्तगफार व इल्तिजा के अल्फाज जबान से निकालना और अदा करना
भी मुश्किल हो जाता है।
रोजा तो अमीर व गरीब सभी रखेंगे उनमें ऐसे बहुत होंगे जो जुहर के बाद ही से इफ्तारी के इंतखाब और तरह तरह की खाने-पीने की चीजें जमा करने
में मसरूफ हो जाया करेंगे। लेकिन खुदा के कुछ वह नादार बंदे भी होगें जिनको दाल रोटी और चटनी के सिवा कुछ और मुयस्सर नहीं। दिन भर रोजा से रहेंगे अपना काम काज करेगे और इफ्तार व सहरी के वक्त खुदा का दिया हुआ
सादा सा खाना खाकर रोजा रखेंगे दिन भर के थके थकाए भी होंगे इसलिए जब शाम को इफ्तार करेंगे तो अपनी सादा इफ्तारी पर दिल की गहराइयों से अल्मदोल्लिाह कहेगे और उनकी जबान से शुक्र के अल्फाज निकलेंगे। और
कुछ ऐसे भी होंगे जिनको भरपेट यह सादा खाना भी न नसीब होगा। इसलिए जिनको अल्लाह ने नवाजा वह अगर अपनी खाने पीने की चीजों में से कुछ
कमी करके उन गरीबो का हिस्सा लगाएं
तो उनके रोजों का सवाब दोबाला हो जाएगा। और शायद यह अदा
मालिक को कुछ ऐसी पसंद आए कि रमजान के सिलसिले में जो फजायल व बरकात बयान होते हैं उनके बड़े
हिस्से को हासिल करने की तौफीक मिल
जाए। हमको रोजे के अज्र व सवाब के सिलसिले में जो सुनाया और बताया जा रहा है उस पर पूरा यकीन भी होना चाहिए। रोजेदार के लिए पिछले तमाम गुनाहों के माफ करने का वादा इस यकीन ही पर फरमाया गया है। जो शख्स ईमान व यकीन और सवाब की उम्मीद रखते हुए रोजे रखेगा उसके पिछले तमाम गुनाह माफ हो जाएंगे। लिहाजा रोजे के जो फजायल भी आप सुनें उसमें शक न होना चाहिए। इसके मिलने का यकीन रखिए। हां इसका ख्याल
रहे कि कहीं हम खुद ही अपने रोजे
को ऐसा नाकिस न बना लें कि उस अज्र के लायक न रहें। खुलासा यह कि यह खैर व बरकत की घड़ियां गफलत में न गुजर जाएं और अगला रमजान आने से पहले किताबे जिंदगी का वरक ही पलट जाए। इसलिए यह मुबारक घड़ियां फिक्र व एहतेमाम के साथ गुजारें।
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