गर्मी की शिद्दत को करिए दरकिनार , रब की जजा मिलेगी बेशुमार : मौलाना अफजल

गोरखपुर.मस्जिद खादिम हुसैन तिवारीपुर के पेश इमाम मौलाना अफजल बरकाती ने कहा कि इस्लामी भाईयों और बहनों, अल्लाह का करोड़-करोड़ एहसान हैं कि ये रमज़ानुल मुबारक हमने अपनी ज़िन्दगी में पाया. भले ही इस बार के रोज़े बहुत शदीद गर्मी में आए हैं मगर इस गर्मी से डरकर रोज़े कजा मत कर देना क्या पता अगला माहे रमज़ान नसीब होगा भी या नही? और ये ख्याल मत करना कि इस साल गर्मी ज़्यादा हैं मगर अगली साल रोज़े ज़रूर रखेंगे हां, अगर ज़िन्दगी बाक़ी रही तो ज़रूर रखेंगे लेकिन ज़िन्दगी का कोई भरोसा नही कि अगले माहे रमज़ान तक हम ज़िन्दा रहे. 🏼इसलिए ये ख़याल करे कि इस बार गर्मी ज़्यादा हैं तो क्या हुआ मेरा रब मुझे सवाब भी बेशुमार अत़ा फ़रमाएगा. इसलिए बाकी बचे रोजे में गर्मी की शिद्दत को करिए दरकिनार..रोजे की जजा मिलेगी बेशुमार.. अल्लाह के जो नेक बन्दे होते हैं वो ये जानते हैं कि क़यामत की गर्मी के आगे दुनिया की गर्मी कुछ भी नही और वो अपने रब को राज़ी करने के लिए मुश्किल से मुश्किल नेकी भी कभी नही छोड़ते. अल्लाह हमें माहे रमज़ानुल मुबारक की क़द्र करने की त़ौफ़ीक़ अत़ा करे. एक वाकिया मशहूर है कि ह़ज्जाज बिन यूसुफ़ एक मर्तबा दौराने सफ़रे ह़ज मक्का मुकर्रमा व मदीना मुनव्वरह के दरमियान एक मन्ज़िल में उतरा और दोपहर का खाना तैयार करवाया और अपने ह़ाजिब (यानी चौबदार) से कहा कि किसी मेहमान को ले आओ. ह़ाजिब ख़ैमे से बाहर निकला तो उसे एक आराबी लेटा हुआ नज़र आया, इसने उसे जगाया और कहा: "चलो तुम्हे अमीर ह़ज्जाज बुला रहे हैं". आराबी आया तो ह़ज्जाज ने कहा: "मेरी दावत क़बूल करो और हाथ धोकर मेरे साथ खाना खाने बैठ जाओ". आराबी बोला: "माफ़ फ़रमाइए, आपकी दावत से पहले मैं आपसे बेहतर एक करीम की दावत क़बूल कर चुका हूं". ह़ज्जाज ने कहा: "वो किसकी"? आराबी बोला: "अल्लाह की जिसने मुझे रोज़ा रखने की दावत दी और मैं रोज़ा रख चुका हूं". ह़ज्जाज ने कहा: "इतनी सख़्त गर्मी में रोज़ा"? आराबी ने कहा: "हां, क़यामत की सख़्त त़रीन गर्मी से बचने के लिए"! ह़ज्जाज ने कहा: "आज खाना खा लो और ये रोज़ा कल रख लेना". आराबी बोला: "क्या आप इस बात की ज़मानत देते हैं कि मैं कल तक ज़िन्दा रहूंगा". ह़ज्जाज ने कहा: "ये बात तो नही". आराबी बोला: "तो फिर वो बात भी नही"! ये कहा और चल दिया. यह वाकिया सबक है रोजा ना रखने वालों के लिए कि पता नहीं कल हो ना हो. रमजान मिले या ना मिलें. इसलिए आराबी बन हज्जाज ना बन.

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