


गोरखपुर. मुफ्ती मौलान अख्तर हुसैन अजहर मन्नानी ने दीनी किताबों के हवाले से बताया कि शबे कद्र के मुताल्लिक अल्लाह तआला फरमाता है कि बेशक हमनें कुरआन को शबे कद्र में उतारा। शबे कद्र हजार महीनों से बेहतर है यानी हजार महीना तक इबादत करने का जिस कदर सवाब है उस से ज्यादा शबे कद्र में इबादत का सवाब है । इस रात में फरिश्तें उतरते है और जिब्रील भी नाजिल होते है। अपने परवरदिगार के हुक्म से वह रात मुकम्मल सलाम है सुब्ह सादिक तक ।
खुशनसीब है वह शख्स जिसको इस रात की इबादत नसीब हो जाये जो आदमी इस एक रात को इबादत में गुजार दे उसने गोया 83 साल 4 माह से ज्यादा वक्त इबादत में गुजार दिया। रसूलल्लाह सल्लल्लाहौ अलैही वसल्लम ने फरमाया शबे कद्र अल्लाह तआला ने मेरी उम्मत को अता की है। यह पहली उम्मतों को नहीं मिली। हजरत अबूहुरैरा रजिअल्लाहों अन्हू से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्लल्लाहौ अलैही वसल्लम ने फरमाया जो शख्स शबे कद्र में ईमान के साथ और सवाब की नियत से इबादत करे उसके पिछले तमाम गुनाह माफ हो जाते है। हजरत अनस रदिअल्लाह अन्हू से रिवायत है कि नबी अलैहिस्सलाम ने फरमाया शबे कद्र में हजरत जिब्रील अलैहिस्सलाम फरिश्तों की एक जमात के साथ उतरते है और उस शख्स के लिए जो खड़े या बैठे अल्लाह की जिक्र कर रहा है और इबादत में मशगूल है उसके लिए रहमत की दुआ करते है। इन्हीं से मरवी है कि एक बार जब रमजानुलमुबारक का महीना आया तो रसूलल्लाह सल्लल्लाहौ अलैही वसल्लम ने फरमाया तुम्हारे उपर यह महीना आ चुका है जिसमें एक रात हजार महीनों से ज्यादा बेहतर है जो इस रात सेे महरूम रह गया वह गोया सारी ही भलाई से महरूम रहा और उसकी भलाई से वही मरहूम होता है जो वाकई महरूमुल किस्मत है।
हजरत आयशा रजिअल्लाहों अन्हा से मरवी है कि नबी पाक ने फरमाया शबे कद्र को आखिरी अशरा की ताक रातों में तलाश करो यानी रमजान की 21, 23, 25, 27, 29 में तलाशों।
नबी पाक को शबे कद्र की मख्सूस तारीख को खबर थी आप बाहर तशरीफ लाये की बताये इतने में देखा कि दो लोग आपस में झगड़ा कर रहे थे आप के जेहन से वह बात निकाल दी गई । आप ने फरमाया तुम्हारी लड़ाई की वजह से अल्लाह ने शबे कद्र की तख्सीस को नेमत को उठा दिया। अब तुम शबे कद्र को ताक रातों में ढूढों । इस हदीस शरीफ से मालूम हुआ की झगड़ों से अल्लााह की रहमत उठ जाती है। और बेबरकती बढ़ जाती है। शबे कद्र की मख्सूस तारीख में मुख्तलिफ रिवायतें है लेकिन हजरत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रजिअल्लाहों अन्हू फरमाते हे कि मैंने शबे कद्र मालूम करने के लिए ताक अदद में गौर किया तो सात का अदद ज्यादा मुनासिब मालूम हुआ जब सात के अदद पे गौर किया तो मालूम हुआ कि आसमान भी सात है और जमीन भी सात, दरिया भी सात ओर सफा, मरवा पहाड़ी के बीच सई (दौड़) भी सात, काबा का तवाफ भी सात बार, कंकरी भी सात फेंकी जाती है। कुरआन की किरत भी सात, सज्दा सात आजा (हिस्सा) से किया जाता है। दोजख के दरवाजे सात, दोजख के तबके साथ, युसूफ अलैहिस्सलाम भी सात साल कैद में रहे। सूरह युसूफ में जिन गायों का जिक्र है वह भी सात। असहाबे कहफ भी सात। पांच वक्त की सतरह रकअतें है। नसब के ऐतबार से सात किस्म की औरतों से निकाह हराम है। सूरह इन्ना अन्जलनाह में सलाम तक सत्तईस हुरूफ है। आप ने इरशाद फरमाया कि नबी पाक की उम्मत के शहीद भी सात तरह के है जो खुदा की राह में मारा गया, जो ताउन की बीमारी से मरा, जो सिल की बीमारी से मरे, जो पानी मे डूब कर मरे, जो आग में जल जाने से मरे, जो दस्त की बीमारी से मरे, जो औरत बच्चे की पैदाइश में मरे। फरमाते है कि अक्सर चीजो को अल्लाह ने सात के हिसाब से बनाया है तो अगर शबे कद्र रमजान के आखिरी अशरा में है तो इससे दलील मिलती है कि शबे कद्र सत्ताईसवीं शब को होगी।
इस रात को जो बंदे ए मोमिन पूरी रात इबादत में गुजार दे इस लिए कि वह नहीं जानता की आईंदा साल फिर इतना मुबारक दिन मिले कि न मिले इसलिए की बहुत ऐसे मुसलमान जो गुजश्ता रमजान में हमारे साथ थे आज शहरे खामूशां (कब्र) में आराम कर रहे है इसलिए मुसलमानों को चाहिए कि इस रहमतों बरकत वाली रात को जाया (बर्बाद) न करे इशा की जमाअत के बाद से नवाफिल पढ़े कुरआन करीम की तिलावत करें । दुरूद शरीफ, कलिमा तैय्यब और जिक्रों असकार करते हुये पूरी रात गुजार दे और फिर फज्र की नमाज बा जमाआत पढ़ कर घरों को जायें। अल्लाह पाक हम सब को इसकी तौफीक अता फरमाये।
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