बादशाह जहांगीर का उर्दू बाजार गोरखपुर गुलजार

उर्दू बाजार गुलजार गोरखपुर। इस समय ईद के लिए उर्दू बाजार सज चुका है। खरीददारी जोरों पर है। मुगल काल में यह बाजार शबाब पर था। हर जरूरत पूरी होती थी। वक्त बदला तो बदल गयी इस बाजार की रंगत। आधुनिकता के रंग में बाजार ने भी ओढ़ी फैशन की चादर, लोग यहीं से ईद की खरीददारी करना पसंद करते है। आस-पास के क्षेत्रों के लोगों के लिए बड़े बाजार के रूप में इसका शुमार है। ज्वैलरी, कपड़े, बैग, चूड़िया रेडीमेड गारमेंट, क्राकरी, इलैक्ट्रानिक आइटम सहित जरूरत का हर सामान आसानी से मुहैया है। बाजार में जूता, चप्पल, प्लास्टिक व अन्य धातुओं के बर्तन, शीशे के समान, टोपी, इत्र, आटोफिशियल ज्वैलरी, बेल्ट, चश्मा, सजावट के लिए प्लास्टिक के फूल उचित मूल्य पर मिल जायेंगे। कुर्ता पैजामा शर्ट पैंट, सलवार सूट के कपड़ों का बड़ा बाजार है। गोलघर की अपेक्षा कपड़े सस्ते व बजट में मिल जाते है। सुबह दुकान खुलती है। तो देर रात तक चलती रहती है। शाम होते ही बाजार बिजली की रोशनी में नहा जाता है। जायके का भी खास इंतेजमा है। यानी सारी जरूरतें पूरा करता है ऐतिहासिक उर्दू बाजार। आईयेगा तो जाने का मन नहीं करेगा। ऐतिहासिक तथ्य रिवायत के मुताबिक इस बाजार का निर्माण मुगल वंश के अजीम बादशाह जहांगीर के शासन काल में हुआ। रिवायतों पर यकीन करें तो बादशाह जहांगीर का लश्कर यहीं ठहरा था। रोजमर्रा के सामान जुटाने के लिए एक बाजार की जरूरत पड़ी थी। उनकी जरूरतें पूरी करने के लिए उर्दू बाजार बना। धीरे-धीरे इस अस्थायी बाजार ने स्थायी रूप अख्तियार कर लिया। यहीं से सटे राप्ती नदी बहा करती थी। मुगलिया सल्तनत की फौज हमेशा दरिया के किनारे ही पड़ाव डालती थी। इस अहम वजह से उर्दू बाजार की नींव पड़ी। उर्दू शब्द तुर्की भाषा से लिया गया है। इसका अर्थ होता है फौज या छावनी। चूंकि मुगल अफगानिस्तान वगैरह जगह से आय थे और फारसी भाषा को राजकीय भाषा के रूप में प्रयोग करते थे। मुगलों ने ही फारसी व हिन्दी के मिलाप से उर्दू भाषा ईजाद की। उर्दू बाजार का अर्थ फौज का बाजार या छावनी से लिया जाता है। बादशाह मुअज्जम शाह े इस बाजार के पास जामा मस्जिद निर्मित करवायी।

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