शहर में है सूक्ष्म दर्शी से पढ़ा जाने वाला हथेली से छोटा व हस्तलिखित दुर्लभ बड़ा कुरआन शरीफ
गोरखपुर। सूक्ष्म दर्शी से पढ़ा जाने वाला हथेली से छोटा व दुर्लभ हस्तलिखित बड़ा कुरआन शरीफ शहर में मौजूद है। जिससे शहर के लोग कम वाकिफ है। रमजानुल मुबारक के पाक महीने में हम आपको कुरआन शरीफ के इन जखीम नुस्खों के बारे में बता रहे है।
सबसे बड़ा कुरआन शरीफ तिवारीपुर स्थित मरहूम खादिम हुसैन के खानदान में व खूनीपुर स्थित मदरसा अंजुमन इस्लामियां में भी हस्तलिखित बड़े कुरआन शरीफ का नुस्खा मौजूद है। वहीं हथेली से भी छोटा कुरआन शरीफ एमएसआई इंटर कालेज बक्शीपुर मंे मौजूद है। इसके अलावा खोखर टोला स्थित सैयद जफर हसन के घर में भी छोटे कुरआन शरीफ का नुस्खा मौजूद है। सौ वर्ष से अधिक पुराने कुरआन शरीफ के नुस्खों का दीदार यहां आसानी से किया जा सकता है। वहीं बसंतपुर के रहने वाले राजकुमार वर्मा द्वारा डेढ़ सेंटी मीटर का दरूद शरीफ भी लाजवाब है।
दुर्लभ डेढ़ सौ साल पुराना बड़ा कुरआन शरीफ तिवारीपुर में
तिवारीपुर स्थित मरहूम खादिम हुसैन के खानदान में मौजूद दुर्लभ हस्तलिखित सबसे बड़े कुरआन शरीफ की लम्बाई 24 इंच, चैड़ाई 18 इंच, ऊंचाई 4 इंच है। यह तीन जिल्दों में है। एक जिल्द दस पारों में है। एक जिल्द का वजन करीब 2 से 3 किलो का होगा। हस्तलिखित कुरआन मय उर्दू तर्जुमा है।
मरहूम खादिम हुसैन के वंशज सैयद राजिक हुसैन ने बताया कि मुगल शहंशाह औरंगजेब की जब हुक्मरानी चली तो आपके दौरे हुक्मत मंे जनपद के डोमिनगढ़ के राजा डोमसिंह ने आवाम पर तरह-तरह के जुल्म करने शुरू किए। इसकी खबर शहंशाह को हुई तो आपने हमारे वंशज शेख सनाउल्लाह रहमतुल्लाह अलैह को शाही फौज की टुकड़ी का सिपहसालार बना कर भेजा। आप एक टुकड़ी को लेकर आये और वर्तमान तिवारीपुर (औलिया चक ) में ठहरें। राजा को गिरफ्तार कर शहंशाह के पास भेज दिया। शहंशाह के नाम एक खत लिखा कि आपकी सेवा के लायक में नहीं रह गया हूं आप मुझे यहीं तिवारीपुर (औलियाचक) में रहने की इजाजत दें दें। शहंशाह ने कुबूल कर लिया। और 1070 हिजरी 27 शाबनुल मोअज्जम को सनद जारी कि आपको कई गांव इनायत किया। इस सनद पर शहंशाह के आफिस की मुहर के साथ शहंशाह की अगंूठी की भी मुहर लगी हुई है। जो गोरखपुर विश्वविद्यालय के मध्य कालीन इतिहास विभाग में मौजूद है। जिसके बारे में खादिम हुसैन ने अपने हस्तलिखित नोट में भी लिखा है। इसके अलावा जिस हुजरे मंें शेख सनाउल्लाह रहमतुल्लाह अलैह रहते थे वहीं बड़े कुरआन शरीफ के नुस्खे बक्शे में रखे हुए है।
सैयद आमिर ने बताया कि दादा मरहूम खादिम हुसैन को अकसर इस कुरआन शरीफ की तिलावत करते हुए देखा। इस हिसाब से मैं कह सकता हूं कि यह डेढ़ सौ साल से भी ज्यादा पुराना नुस्खा है। उन्होंने बताया कि कुरआन शरीफ के पन्ने टूटने लगे है। लेकिन इस महफूज रखने की कोशिश की जा रही है।
सूक्ष्मदर्शी से देखे जाने वाला हथेली से भी छोटा कुरआन शरीफ
बक्शीपुर स्थित एमएसआई इंटर कालेज में सबसे छोटा कुरआन है। यह नुस्खा दुनिया के सबसे छोटे कुरआन से लिया गया है। इसकी लम्बाई 2.5 सेमी, चैड़ाई 1.7 सेमी और ऊंचाई एक सेमी है। वजन 2.760 मिली ग्राम है। हर साल विद्यालय मंे लगने वाली दीनी नुमाइश में इसे प्रदर्शित किया जाता है। इसे सूक्ष्म दर्शी के माध्यम से पढ़ा व देखा जा सकता है। इसे ताबीजी कुरआन भी कहते है। कालेज के लाइब्रेरीयन सोहराब ने बताया कि यह नुस्खा बहुत पुराना है। जब से यहां नौकरी कर रहा हूं यह देख रहा हूं। नुमाइश का खादिम हूं। बच्चों के छूने की वजह से इसे शीशे के फ्रेम में कर दिया गया अब यह महफूज है। इसकी साइज टिकट के बराबर है। लोग इसे चांदी की डिबिया में रखकर पहनते थे। हालांकि उलेमा ताबीजी कुरआन को पहनने से मना करते हैं। वहीं खोखर टोला स्थित सैयद जफर हसन के घर पर छोटे कुरआन का नुस्खा मौजूद है। इसे इनके भाई मरहूम शौकत अली ने लाकर दिया था। उन्होंने बताया कि यह उन्हें 40 साल पहले भाई ने दिया था। तब से संभाल कर रखा है। कई हिस्से इधर-उधर हो गये। कुछ हिस्से बचे हुए है।
हस्तलिखित कुरआन शरीफ व नायाब किताबों का जखीरा अंजुमन में
खूनीपुर स्थित मदरसा अंजुमन इस्लामियां की समृद्ध लाइब्रेरी में हस्तलिखित कुरआन व नायाब किताबों का जखीरा है। करीब आठ हजार किताबें है। लाइब्रेरी में हस्तलिखित कुरआन शरीफ भी मौजूद है। नौ जिल्दों में कुरआन शरीफ सुरक्षित है। इसकी तफसीर हुसैनी है। यह बेहद दुर्लभ है। मदरसे के शिक्षक डा. मोहम्मद अजीम फारूकी ने बताया कि हस्तलिखित कुरआन शरीफ का जो नुस्खा यहां है वह मुबइज्जा है। अंजुमन ने बड़े एहतियात से इसे संभाल कर रखा हुआ है। इसका कागज कमजोर हो चुका है। खोलने पर टूटने लगता है। वहीं कुछ कागजों को दीमक ने अपना निवाला बना लिया है। यह हस्तलिखित कुरआन अंजुमन की अनमोल धरोहर है।
डेढ़ सेमी का दरूद शरीफ पुस्तिका
बसंतपुर के रहने वाले राज कुमार वर्मा ने डेढ़ सेंटी मीटर की दरूद शरीफ पुस्तिका तैयार की है। राज कुमार वर्मा को अरबी नहीं आती है लेकिन मौलानओं से दरूद शरीफ को लिखने की आज्ञा लेकर डेढ़ सेमी की दरूद शरीफ की पुस्तक मुकम्मल कर दी। इसे बनाने में चार माह का समय लगा। इस किताब में 30 दरूद शरीफ है। जो अरबी लिपि मंे हैं। दरूद शरीफ के नीचे अरबी शब्द का उच्चारण भी है। यह भी अपने में नायाब है।
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उलेमा क्या कहते है
मुफ्ती अख्तर हुसैन ने बताया कि रमजानुल मुबारक के इस मुकद्दस महीने में कुरआन मजीद नाजिल हुआ। कुरआन शरीफ का पढ़ना देखना, छूना, सुनना सब इबादत में शामिल है। कुरआन मजीद पूरी दुनिया के लिए हिदायत है। हमें कुरआन मजीद के मुताबिक बताए उसूलों पर जिदंगी गुजारनी चाहिए।
मौलाना रियाजुद्दीन ने कहा कि अल्लाह के रसूल पर कुरआन मजीद 23 साल में नाजिल हुआ। कुरआन मजीद पर अमल करके ही दुनिया में अमन और शंति कायम की जा सकती है।
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ये भी जानें
पवित्र रमजान में उतरा कुरआन शरीफ
गोरखपुर। रमजान में खुुदा की छोटी बड़ी बहुत सी किताबें नाजिल (उतारी गयी) हुई। बड़ी किताब को किताब और छोटी को सहीफह कहते है। उनमें चार किताबें बहुत मशहूर है अव्वल तौरेत जो हजरते मूसाअलैहिस्सलाम पर नाजिल हुई। दूसरी जबूर जो हजरत दाऊद अलैहिस्सलाम पर नाजिल हुई। तीसरी इन्जील जो हजरते ईसा अलैहिस्सलाम पर नाजिल हुई। चैथी कुरआन मजीद जो पैगम्बर मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम पर नाजिल हुुई। पूरा कुरआन मजीद एक दफा इकट्ठा नहीं नाजिल हुआ बल्कि जरूरत के मुताबिक 23 वर्षों में थोड़ा-थोड़ा नाजिल हुआ। कुरआन शरीफ के किसी एक हर्फ लफ्ज या नुक्ते को कोई बदलने की कोशिश करें तों बदलना मुमकिन नहीं। अगली किताबें नबियों को ही जुबानी याद होती लेकिन कुरआन मजीद का यह मोजजा है कि मुसलमानों का बच्चा बच्चा उसकों याद कर लेता है। कुरआन मजीद की सात किरातें है। मतलब यह है कि कुरआन शरीफ को सात तरीकों से पढ़ा जा सकता है और यह सातों तरीके बहुत मशहूर है। हिन्दुस्तान में आसिम की रिवायत से ही कुरआन पढ़ा जाता है। रमजान माह में हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम पर सहीफे 3 तारीख को उतारे गए। हजरत दाऊद अलैहिस्सलाम को जबूर आसमानी किताब 18 या 21 रमजान को मिली और हजरत मूसा अलैहिस्सलाम को तौरेत 6 रमजान को मिली। हजरत ईसा अलैहिस्सलाम को इंजील 12 रमजान को मिली। इस माह में कुरआन शरीफ भी उतारी गयी, हजरत जिब्राईल अलैहिस्सलाम हर साल रमजान में आते और पैगम्बर मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम को कुरआन सुनाते और हमारे नबी उनको कुरआन सुनाते
थे।
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