


गोरखपुर. एतिकाफ की तीन किस्म है। एतिकाफ वाजिब, जिसकी मन्नत मानी जाती है। वह वाजिब हो जाता है। दूसरी सुन्नत मुअक्कदा कि रमजान के आखिरी के दस दिन में एतिकाफ किया जाए यानी बींसवी रमजान को सूरज डूबते वक्त एतिकाफ की नियत से मस्जिद में दाखिल हो और तीसवीं के डूबने के बाद या 29 वीं के चांद होने के बाद निकले। यह एतिकाफ अगर सब छोड़ दें तो सब गुनाहगाार होंगे और अगर किसी एक ने कर लिया तो सब बरी हो गये । इन दो के अलावा जो एतिकाफ किया वह मुस्तहब व गैर मुअक्कदा हैं। एतिकाफ वाजिब और मुअक्कदा के लिए रोजा रखना शर्त है। मुस्तहब के लिए नहीं। एतिकाफ की बहुत फजीलत है। रसूलल्लाह सल्लल्लाहौ अलैही वसल्लम रमजान के आखिरी दस दिन का एतिकाफ खुद फरमातें थे। रसूलल्लाह सल्लल्लाहौ अलैही वसल्लम ने एतिकाफ करने वाले के बारे में फरमाया वह गुनाहों से बाज रहता है और नेकियों से उसे इस कदर सवाब मिलता है जैसे उसने तमाम नेकियां की। इमाम हुसैनि रजिअल्लाहों अन्हू से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्लल्लाहौ अलैही वसल्लम ने फरमाया जिसने रमजान में दस दिनों का एतिकाफ कर लिया तो ऐसा है जैसे दो हज और दो उमरे किए।
मसला
मस्जिद से एतिकाफ करने वाले को बगैर उज्र निकलना हराम है बगैर उज्र निकलने से एतिकाफ खत्म हो जाता है। एतिकाफ करने वालों को मस्जिद से निकलने को दो सबब है एक हाजत तबई, कि मस्जिद में पूरी न हो सके जैसे पखाना, पेशाब, इस्तिंजा, वुजू और गुस्ल की जरूरत हो । दूसरा हाजत शरई जैसे जुमा के लिए जाना या अजान कहने के लिए मीनारा पर जाना वगैरह जायज है। एतिकाफ करने वाल बिल्कुल चुप न बैठा रहे बल्कि कुरआन मजीद की तिलावत करें, हदीस शरीफ पढ़े, दरूद शरीफ की कसरत करे, इल्में दीन का दर्स दें, अम्बिया अलैहिस्सलाम, या बुजुर्गाें के वाकियात पढ़े या सनुाए।
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