रोजे फर्ज किए ताकि पैगम्बर की सुन्नत कायम रहे
कारी अनीस बताते दीनी किताबों के हवाले से बताते है कि इस्लाम में अकसर आमाल किसी ने किसी रूह परवर वाकिया की याद ताजा करने के लिए मुकर्रर किए गए है। अय्यामे रमजान में से कुछ दिन पैगम्बर मोहम्मद साहब ने गारे हिरा में गुजारे थे। इन दिनों में आप दिन को खाने से परहेज करते थे और रात को जिक्रे इलाही में मशगूल रहते थे। तो अल्लाह ने उन दिनों की याद ताजा करने के लिए
। रोजा गुजश्ता उम्मतों में भी था। मगर उसकी सूरत हमारे रोजों से जुदा थी। मुख्तलिफ रिवायतों से पता चलता है कि हजरत आदम हर माह 13,14,15 को रोजा रखते थे। हजरत नूह हमेशा रोजादार रहते थे और हजरत दाऊद एक दिन छोड़कर एक रोजा रखते थे और हजरत ईसा एक दिन रोजा रखते और दो दिन न रखते थे। आम लोगों में ये तास्सुद पाया जाता है कि रोजा रखने से इंसान कमजोर होकर बीमार पड़ जाता हैं। हालांकि ऐसा नहीं। बल्कि सहरी व अफतारी में बे एहतियातियों और बद परहेजियों के सबब नीज दोनों वक्त खूब तेल घी वाल गिजाओं के इस्तेमाल और रात भर वक्तन फवक्त खाते पीते रहने से रोजादार बीमार हो जाता है। लिहाजा सहरी व अफतारी के वक्त खाने पीने में एहितयात बरतनी चाहिए। रोजे के दौरान पेट में गिजा का इतना ज्यादा भी जखीरा न कर लिया जाए कि दिन भर डकारें ही आती रहें। और रोजे में भूख प्यास का अहसास हीं न रहे। पैगम्बर मोहम्मद साहब ने फरमाया कि आदमी के हर नेक काम का बदला दस से सात सौ गुना तक दिया जाता है। खुदा फरमाता है कि यानी रोजा, कि वो तो मेरे लिए है और उसकी जजां मैं खुद दंूगा। खुदा का इरशाद है कि बंदा अपने ख्वाहिश और खाने पीने को सिर्फ मेरी वजह से तर्क करता हैं । रोजेदार के लिए दो खुशियां है एक अफतार के वक्त और एक अपने रब से मिलने के वक्त। रोजादार का मुहं रब के नजदीक मुश्क से ज्यादा पाकीजा है। रोजे के लुगवी माना है रूकना। लिहाजा शरीअत की लफजों मंे सुबह सादिक से लेकर गुरूबे आफताब तक कसदन खाने पीने और सम्भोग से रूके रहने को रोजा कहते है और यही आवाम का रोजा है। खीने पीने और तमाम तर उमूर से रोक कर सिर्फ और सिर्फ अल्लाहकी तरफ मुतवज्जेह होना। यह अखस्सुल खुव्वास का रोजा है। जरूरत इस अम्र की है कि खाने पीने वगैरह से रूके रहने के साथ साथ अपने तमाम तर आजए बदन को भी रोजे का पाबंद बनाया जाय।
आंख का रोजा
आंख का रोजा इस तरह रखना चाहिए कि आंखें जब उठे तो सिर्फ और सिर्फ जायज उमूर ही की तरफ उठे। आंख से मस्जिद देखिए, कुरआन मजीद देखिए। मजाराते अवलिया की जियारत कीजिए।
कानों का रोजा
कानों का रोजा ये है कि सिर्फ औ सिर्फ जाइज बातें सुने मसलन कानों से तिलावत नअत सुनिए, सुन्नतों का बयान सुनिए। अजान इकामत सुनिए। सुनकर जवाब दीजिए। किरअत सुनिए, अच्छी अच्छी बातें सुनिए,
जबान का रोजा
जबान का रोजा ये है कि जबान सिर्फ और सिर्फ नेक व जाइज बातों के लिए ही हरकत में आए। मसलन जबान से तिलावते कुरआन कीजिए। जिक्र दरूद का विर्द कीजिए। नात शरीफ पढिए। सुन्नतों का बयान कीजिए।
हाथों का रोजा
हाथों का रोजा यह है कि जब भी हाथ उठें तो सिर्फ नेक कामों के लिए उठे। मसलन हाथों से कुरआन मजीद को छुएं, हो सके तो हाथों से किसी अंधे की मदद कीजिए। यतीमों पर शफकत का हाथ ।
पांव का रोजा
पावं का रोजा यह है कि पांव उठे तो नेक कामों के लिए । मसलन पांव चले तो मस्जिद की तरफ। मजाराते अवलिया की तरफ, सुन्नतों े इज्तिमाअ की तरफ चलें, नेक साहेबतों की तरफ चलें, सिी की मदद के लिए चले।
। रोजा गुजश्ता उम्मतों में भी था। मगर उसकी सूरत हमारे रोजों से जुदा थी। मुख्तलिफ रिवायतों से पता चलता है कि हजरत आदम हर माह 13,14,15 को रोजा रखते थे। हजरत नूह हमेशा रोजादार रहते थे और हजरत दाऊद एक दिन छोड़कर एक रोजा रखते थे और हजरत ईसा एक दिन रोजा रखते और दो दिन न रखते थे। आम लोगों में ये तास्सुद पाया जाता है कि रोजा रखने से इंसान कमजोर होकर बीमार पड़ जाता हैं। हालांकि ऐसा नहीं। बल्कि सहरी व अफतारी में बे एहतियातियों और बद परहेजियों के सबब नीज दोनों वक्त खूब तेल घी वाल गिजाओं के इस्तेमाल और रात भर वक्तन फवक्त खाते पीते रहने से रोजादार बीमार हो जाता है। लिहाजा सहरी व अफतारी के वक्त खाने पीने में एहितयात बरतनी चाहिए। रोजे के दौरान पेट में गिजा का इतना ज्यादा भी जखीरा न कर लिया जाए कि दिन भर डकारें ही आती रहें। और रोजे में भूख प्यास का अहसास हीं न रहे। पैगम्बर मोहम्मद साहब ने फरमाया कि आदमी के हर नेक काम का बदला दस से सात सौ गुना तक दिया जाता है। खुदा फरमाता है कि यानी रोजा, कि वो तो मेरे लिए है और उसकी जजां मैं खुद दंूगा। खुदा का इरशाद है कि बंदा अपने ख्वाहिश और खाने पीने को सिर्फ मेरी वजह से तर्क करता हैं । रोजेदार के लिए दो खुशियां है एक अफतार के वक्त और एक अपने रब से मिलने के वक्त। रोजादार का मुहं रब के नजदीक मुश्क से ज्यादा पाकीजा है। रोजे के लुगवी माना है रूकना। लिहाजा शरीअत की लफजों मंे सुबह सादिक से लेकर गुरूबे आफताब तक कसदन खाने पीने और सम्भोग से रूके रहने को रोजा कहते है और यही आवाम का रोजा है। खीने पीने और तमाम तर उमूर से रोक कर सिर्फ और सिर्फ अल्लाहकी तरफ मुतवज्जेह होना। यह अखस्सुल खुव्वास का रोजा है। जरूरत इस अम्र की है कि खाने पीने वगैरह से रूके रहने के साथ साथ अपने तमाम तर आजए बदन को भी रोजे का पाबंद बनाया जाय।
आंख का रोजा
आंख का रोजा इस तरह रखना चाहिए कि आंखें जब उठे तो सिर्फ और सिर्फ जायज उमूर ही की तरफ उठे। आंख से मस्जिद देखिए, कुरआन मजीद देखिए। मजाराते अवलिया की जियारत कीजिए।
कानों का रोजा
कानों का रोजा ये है कि सिर्फ औ सिर्फ जाइज बातें सुने मसलन कानों से तिलावत नअत सुनिए, सुन्नतों का बयान सुनिए। अजान इकामत सुनिए। सुनकर जवाब दीजिए। किरअत सुनिए, अच्छी अच्छी बातें सुनिए,
जबान का रोजा
जबान का रोजा ये है कि जबान सिर्फ और सिर्फ नेक व जाइज बातों के लिए ही हरकत में आए। मसलन जबान से तिलावते कुरआन कीजिए। जिक्र दरूद का विर्द कीजिए। नात शरीफ पढिए। सुन्नतों का बयान कीजिए।
हाथों का रोजा
हाथों का रोजा यह है कि जब भी हाथ उठें तो सिर्फ नेक कामों के लिए उठे। मसलन हाथों से कुरआन मजीद को छुएं, हो सके तो हाथों से किसी अंधे की मदद कीजिए। यतीमों पर शफकत का हाथ ।
पांव का रोजा
पावं का रोजा यह है कि पांव उठे तो नेक कामों के लिए । मसलन पांव चले तो मस्जिद की तरफ। मजाराते अवलिया की तरफ, सुन्नतों े इज्तिमाअ की तरफ चलें, नेक साहेबतों की तरफ चलें, सिी की मदद के लिए चले।
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