संदेश

जून, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

रमजान में एतिकाफ करने वाले को दो हज का सवाब

चित्र
गोरखपुर. एतिकाफ की तीन किस्म है। एतिकाफ वाजिब, जिसकी मन्नत मानी जाती है। वह वाजिब हो जाता है। दूसरी सुन्नत मुअक्कदा कि रमजान के आखिरी के दस दिन में एतिकाफ किया जाए यानी बींसवी रमजान को सूरज डूबते वक्त एतिकाफ की नियत से मस्जिद में दाखिल हो और तीसवीं के डूबने के बाद या 29 वीं के चांद होने के बाद निकले। यह एतिकाफ अगर सब छोड़ दें तो सब गुनाहगाार होंगे और अगर किसी एक ने कर लिया तो सब बरी हो गये । इन दो के अलावा जो एतिकाफ किया वह मुस्तहब व गैर मुअक्कदा हैं। एतिकाफ वाजिब और मुअक्कदा के लिए रोजा रखना शर्त है। मुस्तहब के लिए नहीं। एतिकाफ की बहुत फजीलत है। रसूलल्लाह सल्लल्लाहौ अलैही वसल्लम रमजान के आखिरी दस दिन का एतिकाफ खुद फरमातें थे। रसूलल्लाह सल्लल्लाहौ अलैही वसल्लम ने एतिकाफ करने वाले के बारे में फरमाया वह गुनाहों से बाज रहता है और नेकियों से उसे इस कदर सवाब मिलता है जैसे उसने तमाम नेकियां की। इमाम हुसैनि रजिअल्लाहों अन्हू से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्लल्लाहौ अलैही वसल्लम ने फरमाया जिसने रमजान में दस दिनों का एतिकाफ कर लिया तो ऐसा है जैसे दो हज और दो उमरे किए। मसला मस्जिद से एतिकाफ करन...

शब-ए-कद्र हजार महीनों से बेहतर

चित्र
गोरखपुर. मुफ्ती मौलान अख्तर हुसैन अजहर मन्नानी ने दीनी किताबों के हवाले से बताया कि शबे कद्र के मुताल्लिक अल्लाह तआला फरमाता है कि बेशक हमनें कुरआन को शबे कद्र में उतारा। शबे कद्र हजार महीनों से बेहतर है यानी हजार महीना तक इबादत करने का जिस कदर सवाब है उस से ज्यादा शबे कद्र में इबादत का सवाब है । इस रात में फरिश्तें उतरते है और जिब्रील भी नाजिल होते है। अपने परवरदिगार के हुक्म से वह रात मुकम्मल सलाम है सुब्ह सादिक तक । खुशनसीब है वह शख्स जिसको इस रात की इबादत नसीब हो जाये जो आदमी इस एक रात को इबादत में गुजार दे उसने गोया 83 साल 4 माह से ज्यादा वक्त इबादत में गुजार दिया। रसूलल्लाह सल्लल्लाहौ अलैही वसल्लम ने फरमाया शबे कद्र अल्लाह तआला ने मेरी उम्मत को अता की है। यह पहली उम्मतों को नहीं मिली। हजरत अबूहुरैरा रजिअल्लाहों अन्हू से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्लल्लाहौ अलैही वसल्लम ने फरमाया जो शख्स शबे कद्र में ईमान के साथ और सवाब की नियत से इबादत करे उसके पिछले तमाम गुनाह माफ हो जाते है। हजरत अनस रदिअल्लाह अन्हू से रिवायत है कि नबी अलैहिस्सलाम ने फरमाया शबे कद्र में हजरत जिब्रील अलैहिस्सल...

रमजान मुबारक की घड़ियां फिक्र व एहतेमाम के साथ गुजारें

चित्र
गोरखपुर..रमजान के मुबारक दिन और रात अब आखिर दौर पर है. बंदे रब को राजी करने के लिए इबादत में लगे हुए है. एतकाफ और लैलतुल कद्र के फजायल के चर्चे जबान पर हैं। हम सब रोजे से हैं अल्लाह की दी हुई हलाल रोजी से भी हाथ खींच लिया है इन चंद घंटों के लिए जो सुबह सादिक से लेकर गुरूब आफताब तक ही महदूद हैं। यह तो उमूमी फजा है रोजे और रमजान की लेकिन जिन बातौफीक लोगों को तौफीक मिली है और उन्होंने कुछ पहले ही से इस मुबारक महीने के इस्तकबाल के लिए तैयारी कर रखी है उन पर कुछ और ही कैफियत तारी है। जबाने हर वक्त महबूबे हकीकी के जिक्र व याद से तर आंखें अपनी कोताहियाँ और जिंदगी के बेसूद बल्कि नाफरमानी में गुजरे हुए लम्हात याद करके भीगी भीगी रहती हैं। रात की तंहाइयों में होंट थरथरा उठते हैं। इस्तगफार व इल्तिजा के अल्फाज जबान से निकालना और अदा करना भी मुश्किल हो जाता है। रोजा तो अमीर व गरीब सभी रखेंगे उनमें ऐसे बहुत होंगे जो जुहर के बाद ही से इफ्तारी के इंतखाब और तरह तरह की खाने-पीने की चीजें जमा करने में मसरूफ हो जाया करेंगे। लेकिन खुदा के कुछ वह नादार बंदे भी होगें जिनको दाल रोटी और चटनी के सिवा कुछ और मु...

इफ़्तार में जल्दी करना रसूलल्लाह की सुन्नत

इफ़्तार में जल्दी करना रसूलल्लाह की सुन्नत गोरखपुर. रोज़ेदार जब सुरज डुबने का यक़ीन कर लेते हैं, तब ही "रोज़ा इफ़्तार" करते हैं। ना वह "साइरन" की आवाज़ का इन्तिज़ार करते हैं और ना ही "अज़ान" की आवाज़ का। फ़ौरन वह ख़जूर, छूहारा या पानी से "रोज़ा इफ़्तार" कर लेते हैं। "इफ़्तार" में जल्दी करना सुन्नत है। दुआ यह है- "अल्लाहुम्मा इन्नी लक सुम्तु व बिक आमन्तु व अलैक तवक्कलतु व अला रिज्क़िक अफ़्तरतु"। (ऐ अल्लाह! मैंने तेरे लिए "रोज़ा" रखा और तुझ पर "ईमान" लाया और तुझी पर "भरोसा" किया और तेरे दिए हुए रिज़्क़ से "रोज़ा इफ़्तार" किया)। हदीसों में है कि हमेशा लोग ख़ैर व भलाई के साथ रहेगें, जब तक वह "इफ़्तार" में जल्दी करेगें, यानी जैसे ही सुरज के डूबने का यक़ीन हो जाए, बिला ताख़ीर ख़जूर या पानी वग़ैरह से "रोज़ा" खोल लें। प्यारे नबी ह़ज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया कि "मेरी उम्मत, मेरी सुन्नत पर रहेगी, जब तक इफ़्तार में सितारों का इन्तिज़ार ना करे"। इस हदीस में "इफ़्ता...

गर्मी की शिद्दत को करिए दरकिनार , रब की जजा मिलेगी बेशुमार : मौलाना अफजल

चित्र
गोरखपुर.मस्जिद खादिम हुसैन तिवारीपुर के पेश इमाम मौलाना अफजल बरकाती ने कहा कि इस्लामी भाईयों और बहनों, अल्लाह का करोड़-करोड़ एहसान हैं कि ये रमज़ानुल मुबारक हमने अपनी ज़िन्दगी में पाया. भले ही इस बार के रोज़े बहुत शदीद गर्मी में आए हैं मगर इस गर्मी से डरकर रोज़े कजा मत कर देना क्या पता अगला माहे रमज़ान नसीब होगा भी या नही? और ये ख्याल मत करना कि इस साल गर्मी ज़्यादा हैं मगर अगली साल रोज़े ज़रूर रखेंगे हां, अगर ज़िन्दगी बाक़ी रही तो ज़रूर रखेंगे लेकिन ज़िन्दगी का कोई भरोसा नही कि अगले माहे रमज़ान तक हम ज़िन्दा रहे. 🏼इसलिए ये ख़याल करे कि इस बार गर्मी ज़्यादा हैं तो क्या हुआ मेरा रब मुझे सवाब भी बेशुमार अत़ा फ़रमाएगा. इसलिए बाकी बचे रोजे में गर्मी की शिद्दत को करिए दरकिनार..रोजे की जजा मिलेगी बेशुमार.. अल्लाह के जो नेक बन्दे होते हैं वो ये जानते हैं कि क़यामत की गर्मी के आगे दुनिया की गर्मी कुछ भी नही और वो अपने रब को राज़ी करने के लिए मुश्किल से मुश्किल नेकी भी कभी नही छोड़ते. अल्लाह हमें माहे रमज़ानुल मुबारक की क़द्र करने की त़ौफ़ीक़ अत़ा करे. एक वाकिया मशहूर है कि ह़ज्जाज बिन ...

बादशाह जहांगीर का उर्दू बाजार गोरखपुर गुलजार

उर्दू बाजार गुलजार गोरखपुर। इस समय ईद के लिए उर्दू बाजार सज चुका है। खरीददारी जोरों पर है। मुगल काल में यह बाजार शबाब पर था। हर जरूरत पूरी होती थी। वक्त बदला तो बदल गयी इस बाजार की रंगत। आधुनिकता के रंग में बाजार ने भी ओढ़ी फैशन की चादर, लोग यहीं से ईद की खरीददारी करना पसंद करते है। आस-पास के क्षेत्रों के लोगों के लिए बड़े बाजार के रूप में इसका शुमार है। ज्वैलरी, कपड़े, बैग, चूड़िया रेडीमेड गारमेंट, क्राकरी, इलैक्ट्रानिक आइटम सहित जरूरत का हर सामान आसानी से मुहैया है। बाजार में जूता, चप्पल, प्लास्टिक व अन्य धातुओं के बर्तन, शीशे के समान, टोपी, इत्र, आटोफिशियल ज्वैलरी, बेल्ट, चश्मा, सजावट के लिए प्लास्टिक के फूल उचित मूल्य पर मिल जायेंगे। कुर्ता पैजामा शर्ट पैंट, सलवार सूट के कपड़ों का बड़ा बाजार है। गोलघर की अपेक्षा कपड़े सस्ते व बजट में मिल जाते है। सुबह दुकान खुलती है। तो देर रात तक चलती रहती है। शाम होते ही बाजार बिजली की रोशनी में नहा जाता है। जायके का भी खास इंतेजमा है। यानी सारी जरूरतें पूरा करता है ऐतिहासिक उर्दू बाजार। आईयेगा तो जाने का मन नहीं करेगा। ऐतिहासिक तथ्य रिवायत के मुताबिक ...

ईद की खुशी इबादतगुजार बंदों के लिए

चित्र
गोरखपुर नबी ने फरमाया रमजान शरीफ के मुबारक महीने के मुतअल्लिक इस महीने का पहला अशरा रहमत, दूसरा अशरा मग्फिरत, तीसरा अशरा जहन्नम से आजादी का है। मालूम हुआ कि ये महीना रहमतो, मगाफिरत और दोजख से आजादी का महीना है। लिहाजा इस रहमत, मगफिरत और दोजख से आजादी के इनआमात की खुशी में हमें ईद सईद की खुशी मनाने का मौका मिला। ईदुल फित्र के दिन खुशी का इजहार करना सुन्नत है। हदीस में है कि जब ईदुल फित्र की मुबारक रात तशरीफ लाती है तो इसे ‘लैलतुल जाइजा’ यानी इनआम की रात के नाम से पुकारा जाता है। जब ईद की सुब्ह होती है तो अल्लाह अपने मासूम फरिशतों को तमाम शहरों में भेजता है।चुनाॅंचे वो फरिशतें जमीन पर तशरीफ लाकर सब गलियों और राहों के सिरों पर खड़े हो जाते है। ओर इस तरह निदा देते है ऐ उम्मते मुहम्मद उस खुदा की बारगाह की तरफ चलो। जो बहुत ही ज्यादा अता करने वाला और बड़े से बड़ा गुनाह माफ फरमाने वाला है। खुदा फरमाता है ऐ मेरे बन्दों ! मांगों! क्या मांगते हो? मेरी इज्जत व जलाल की कसम! आज के रोज इस नमाजे ईद के इज्तिमाअ में अपनी आखिरत के बारे में जो कुछ सवाल करोगे वो पूरा करूंगा और जो कुछ दुनिया के बारे में मा...

इस्लाम का अहम फरीजा जकात

चित्र
इस्लाम का अहम फरीजा जकात गोरखपुर। जकात फर्ज है। उसी फरजीयत का इंकार करने वाला काफिर और अदा न करने वाला फासिक और अदायगी में देर करने वाला गुनाहगार मरदुदुश्शहादत है। (गवाही न देने के बराबर) जकात फर्ज होने की चंद शर्तें है। मुसलमान आकिल बालिग होना, माल बकदरे निसाब का पूरे तौर पर मिलकियत में होना, निसाब का हाजते अस्लीया और किसी के बकाया से फारिग होना, माले तिजारत या सोना चांदी होना और माल पर पूरा साल गुजर जाना। सोना चांदी के निसाब (मात्रा) में सोना का निसाब साढ़े सात तोला है जिसमें चालीसवां हिस्सा यानी सवा दो माशा जकात फर्ज है। चांदी का निसाब साढ़े बावन तोला है जिस में एक तोला तीना माशा छः रत्ती जकात फर्ज है। सोना चांदी के बजाय बाजार भाव से उनकी कीमत लगा कर रूपया वगैरह देना भी जायज है। सोना चांदी के जेवरात पर भी जकात वाजिब होती है। तिजारती (बिजनेस) माल की कीमत लगाई जाए फिर उससे सोना चांदी का निसाब पूरा हो तो उसके हिसाब से जकात निकाली जाए। अगर सोना चांदी न हो और न माले तिजारत हो तो कम से कम इतने रूपये हों कि बाजार में साढ़े बावन तोला चंादी या साढ़े सात तोला सोना खरीदा जा सके तो उन रूपर्य...

शहर में है सूक्ष्म दर्शी से पढ़ा जाने वाला हथेली से छोटा व हस्तलिखित दुर्लभ बड़ा कुरआन शरीफ

चित्र
गोरखपुर। सूक्ष्म दर्शी से पढ़ा जाने वाला हथेली से छोटा व दुर्लभ हस्तलिखित बड़ा कुरआन शरीफ शहर में मौजूद है। जिससे शहर के लोग कम वाकिफ है। रमजानुल मुबारक के पाक महीने में हम आपको कुरआन शरीफ के इन जखीम नुस्खों के बारे में बता रहे है। सबसे बड़ा कुरआन शरीफ तिवारीपुर स्थित मरहूम खादिम हुसैन के खानदान में व खूनीपुर स्थित मदरसा अंजुमन इस्लामियां में भी हस्तलिखित बड़े कुरआन शरीफ का नुस्खा मौजूद है। वहीं हथेली से भी छोटा कुरआन शरीफ एमएसआई इंटर कालेज बक्शीपुर मंे मौजूद है। इसके अलावा खोखर टोला स्थित सैयद जफर हसन के घर में भी छोटे कुरआन शरीफ का नुस्खा मौजूद है। सौ वर्ष से अधिक पुराने कुरआन शरीफ के नुस्खों का दीदार यहां आसानी से किया जा सकता है। वहीं बसंतपुर के रहने वाले राजकुमार वर्मा द्वारा डेढ़ सेंटी मीटर का दरूद शरीफ भी लाजवाब है। दुर्लभ डेढ़ सौ साल पुराना बड़ा कुरआन शरीफ तिवारीपुर में तिवारीपुर स्थित मरहूम खादिम हुसैन के खानदान में मौजूद दुर्लभ हस्तलिखित सबसे बड़े कुरआन शरीफ की लम्बाई 24 इंच, चैड़ाई 18 इंच, ऊंचाई 4 इंच है। यह तीन जिल्दों में है। एक जिल्द दस पारों में है। एक जिल्द का वजन करीब 2 से 3...

रोजे फर्ज किए ताकि पैगम्बर की सुन्नत कायम रहे

चित्र
कारी अनीस बताते दीनी किताबों के हवाले से बताते है कि इस्लाम में अकसर आमाल किसी ने किसी रूह परवर वाकिया की याद ताजा करने के लिए मुकर्रर किए गए है। अय्यामे रमजान में से कुछ दिन पैगम्बर मोहम्मद साहब ने गारे हिरा में गुजारे थे। इन दिनों में आप दिन को खाने से परहेज करते थे और रात को जिक्रे इलाही में मशगूल रहते थे। तो अल्लाह ने उन दिनों की याद ताजा करने के लिए । रोजा गुजश्ता उम्मतों में भी था। मगर उसकी सूरत हमारे रोजों से जुदा थी। मुख्तलिफ रिवायतों से पता चलता है कि हजरत आदम हर माह 13,14,15 को रोजा रखते थे। हजरत नूह हमेशा रोजादार रहते थे और हजरत दाऊद एक दिन छोड़कर एक रोजा रखते थे और हजरत ईसा एक दिन रोजा रखते और दो दिन न रखते थे। आम लोगों में ये तास्सुद पाया जाता है कि रोजा रखने से इंसान कमजोर होकर बीमार पड़ जाता हैं। हालांकि ऐसा नहीं। बल्कि सहरी व अफतारी में बे एहतियातियों और बद परहेजियों के सबब नीज दोनों वक्त खूब तेल घी वाल गिजाओं के इस्तेमाल और रात भर वक्तन फवक्त खाते पीते रहने से रोजादार बीमार हो जाता है। लिहाजा सहरी व अफतारी के वक्त खाने पीने में एहितयात बरतनी चाहिए। रोजे के दौरान पेट म...

एक व्यक्ति पर करीब 40 रूपया सदका-ए-फित्रा

चित्र
सदका-ए-फित्रा जल्द अदा करें ताकि गरीब भी खुशियों मंे शामिल हो सकें सदकाए फित्र अदा करना वाजिब हैं। जो शख्स इतना मालदार है कि उस पर जकात वाजिब है, या जकात ब हो मगर जरूरी असबाब से ज्यादा इतनी कीमत का माल व असबाब है जितनी कीमत पर जकात वाजिब होती है तो उस शख्स पर अपनी नाबालिग औलाद की तरफ से सदकाए फित्र देना वाजिब है। फित्रा वाजिब होने की तीन शर्तें है। आजाद होना मुसलमान होना, किसी ऐसे माल के निसाब का मालिक होना जो असली जरूरत से ज्यादा हो। उस माल पर साल गुजरना शर्त नहीं और न माल का तिजारती होना शर्त है और न ही साहिबे माल का बालिगा व अकीला होना शर्त हैं। यहां तक कि नाबालिग बच्चों और वो बच्चे जो ईद के दिन तुलू फज्र यानि सूरज निकलने से पहले पैदा हुये हो और मजनूनों पर भी फित्रा वाजिब हैं। उनके सरपरस्त हजरात को उनकी तरफ से फित्रा वाजिब है। फित्रा की मिकदार याानि मात्रा में दो किलो 45 गा्रम गेहंू या उसके आटे की कीमत से चाहे, गेहूं या आटा दे या उसकी कीमत बेहतर है कि कीमत अदा करे। जब तक फित्रा अदा नहीं किय जाता है तब तक सारी इबादत जमीन व आसमान के बीच लटकी रहती है। जब फित्रा अदा कर दिया जाता है ।तो...
चित्र
सुनीता रमजान में तो मां प्रभावती मोहर्रम में रखती रोजा गोरखपुर। रमजान माह से सभी फैजयाब हो रहे है। उनमें एक नाम काजीपुर कला की रहने वाली 25 वर्षीय श्रीमती सुनीता पासवान का भी है। जो 16 सालों से रमजान का रोजा रख रही है। 16 साल पहले बड़े भाई पुनित कुमार की बीमारी से घर वाले परेशान थे। उस समय रमजान का माह चल रहा था। डाक्टर ने कहा जल्द से जल्द आपरेशन करना पड़ेगा। घर वाले परेशान थे। मुस्लिम सहेली सोनी ने रमजान के रोजे के फैजान के बारे में बताया। फिर दिल में तमन्ना पैदा हुई। बुलाकीपुर स्थित दादा मियां शाह मुकीम शाह बाबा की मजार पर पर मन्नत मांगी कि भाई की तबीयत ठीक हो जायेगी तो रमजान का रोजा रखूंगी। भाई की तबीयत ठीक हो गयी। फिर क्या था वह दिन था और आज का दिन है। हर रमजान का ग्यारहवां रोजा रखती चली आ रही है। साथ ही नवरात का व्रत भी रखती हूं। इस वक्त दो बच्चे भी है। ससुराल महराजगंज में है, पति अनिल कुमार शिक्षक है। रोजा रखने से कभी नहीं रोका। जब भी रोजा रखती हूं खूब इफ्तारी बनती है घर पर रहती हूं तो मुस्लिम सहेलियों के साथ रोजा खोलती हंू और जब सुसराल मंे रहती हूं तो परिवार के साथ रोजा खोलती ह...

शाही मस्जिद बसंतपुर सराय तीन सौ साल पुरानी मस्जिद

चित्र
शाही मस्जिद बसंतपुर सराय तीन सौ साल पुरानी मस्जिद syed farhan ahmad गोरखपुर। बसंतपुर सराय स्थित शाही मस्जिद भी ऐतिहासिक है। बादशाह मुअज्जम शाह ने ऐतिहासिक बसंतपुर सराय में शाही मस्जिद का निर्माण करवाया। इस क्षेत्र के सूबेदार खलीलुर्रहमान पूरी फौज के साथ यहां रहा करते थे। नमाज की सहूलियत के मद्देनजर इसका निर्माण करवाया गया। मस्जिद ज्यादा बड़ी तो नहीं है लेकिन अपने हुस्न कमाल की निशानी है। इस मस्जिद की तामीर इतिहासकारों के मुताबिक करीब 300 साल पुरानी है। पहले सराय में मुसाफिर भी रूकते थे। यहीं पास में राप्ती नदी भी बहती थी। इसलिए इस मस्जिद का महत्व इतिहास में मिलता है। जामा मस्जिद उर्दू बाजार के साथ ही इसका निर्माण हुआ है। पुरातत्व विभाग की टीम ने पिछली बार इसका जायजा लिया था तो पाया था कि बसंतपुर सराय 400 साल पुराना है उसी हिसाब से इस मस्जिद कीउम्र 300 साल से ज्यादा है। इंटेक ने बसंतपुर सराय और मस्जिद के संरक्षण की योजना भी बनायी है। जानिए बादशाह मुअज्जम शाह के बारे में गोरखपुर। बहादुर शाह प्रथम मुअज्जम शाह का जन्म 14 अक्टूबर सन् 1643 ई.में बुरहानपुर भारत में हुआ । बहादुर शाह प्रथम दि...

जामा मस्जिद उर्दू बाजार 1120 हिजरी में बनीं गोरखपुर

चित्र
मुगल सल्तनत की अजीम यादगार शाही जामा मस्जिद उर्दू बाजार सन् 1698 ई. में मुगल बादशाह बहादुर शाह प्रथम मुअज्जम शाह ने कराया निमार्ण मुगल वास्तुकला की शानदार मिसाल मस्जिद 320 साल की हुई syed farhan ahmad ऐतिहासिक मस्जिद के मेहराबों व मिम्बर लाजवाब गोरखपुर। मुगलिया सल्तनत की अजीमुश्शान निशानी ऐतिहासिक जामा मस्जिद उर्दू बाजार। 320 सालों से पूर्वांचल के इतिहास में चार चांद लगा रही है। मुगल वास्तुकला की अनमोल धरोहर के रुप में इसका शुमार है। मुगल बादशाह मुअज्जम शाह का अजीम शाहकार है जामा मस्जिद उर्दू बाजार। मस्जिद आज भी अपने आन बान शान से मुगल सल्तनत के वकार को बयां कर रही। इसकी दरों दीवार में मुगलिया सल्तनत की वास्तुकला अद्भुत रुप से रची बसी नजर आती है। जब आप यहां तशरीफ लायेंगे तो इसकी भव्यता व खुबसूरती देख कर आप का दिल बागबाग हो जायेगा। गुजरे जमाने का नायाब हुनर अपको दिल जीत लेगा। यहां इबादत कर लेंगे तो रूह का ताजगी का अहसास होगा। दूर दराज से लोग यहां पर खास इबादत के लिए भी तशरीफ लाते है। इबादतगाहें खुदा का घर होती है। सारी इबादतगाहें अजीम है। लेकिन इसका खास मकाम है। यकीन जानि...