

बाप-बेटे की कुर्बानी का अजीम पर्व ईद-उल-अजहा
गोरखपुर।
‘‘ ऐ मुसलमां सुन ये नुक्ता दरसे कुरआनी में है।
अजमतें इस्लाम व मुस्लिम सिर्फ कुर्बानी में है।।’’
मदरसा दारूल उलूम हुसैनिया दीवान बाजार के मुफ्ती मौलाना अख्तर हुसैन अजहरी मन्नानी ने बताया कि इस्लाम में कुर्बानियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। उसी में से एक ईद-उल-अजहा है। जो एक अजीम बाप की अजीम बेटे की कुर्बानी के लिए याद किया जाता है। दुनिया के तीन सबसे बड़े मजहब इस्लाम, यहूदी, ईसाई तीनों के एक पैगम्बर जिनका नाम हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम है। उनसे मंसूब एक वाक्या इस त्यौहार की बुनियाद है। यह वाक्या यह है कि खुदा के हुक्म से उन्होंने अपने बेटे हजरत ईस्माइल अलैहिस्सलाम जो 97 सालों की दुआओं के बाद पैदा हुये उनको खुदा की राह में कुर्बान करने से ताल्लुक रखता है। खुदा ने हजरत इब्राहीम को ख्वाब में अपनी सबसे अजीज चीज कुर्बान करने का हुक्म दिया। हजरत इब्राहीम ने अपने तमाम जानवरों को खुदा की राह में कुर्बान कर दिया। यह ख्वाब दो मर्तबा हुआ। तीसरी मर्तबा हजरत इब्राहीम समझ गये कि खुदा उनसे प्यारे लाडले की कुर्बानी का तालिब है। यह अल्लाह की अजमाइश का सबसे बड़ा इम्तेहान था। अल्लाह के हुक्म से उन्हें जिब्ह करने के लिये मीना ले गये। हजरत इब्राहीम जब बेटे के साथ कुर्बानीगाह पहुंचे तो बेटे ने कहा अब्बा मुझे रस्सियों से बांध दीजिए ताकि मैं तड़प न सकूं। अपने कपड़ों को बचाइए ताकि मां खून देखकर बेचैन न हो जाएं और गम में डूब जाएं। छुरी तेज कर लीजिए ताकि गर्दन आसानी से कट जायें और जान आसानी से निकल जाएं। जब हजरत इब्राहीम अपने जिगर के टुकड़े की गर्दन पर छुरी चलाने लगे तो बार-बार चलाने के बावजूद गला नहीं कटा। इसी बीच गैबी आवाज आई। बस ऐ इब्राहीम तुमने आज अपना ख्वाब पूरा किया। तुम्हें तुम्हारे रब ने पसंद किया, तुम इम्तिहान में कामयाब हुए। इसके बाद से कुर्बानी की रिवायत शुरू हुई। कैसा अजीबो गरीब मंजर था छूरी चलाने वाला भी पैगम्बर ओर जिस पर छुरी चलायी जा रही है वह भी पैगम्बर। अल्लाह को सिर्फ उनके हिम्मत ओर फरमाबरदारी का इम्तिहान लेना था इसलिए जब आंख खोली तो देखा एक दुम्बा़ जब्ह किया हुआ पड़ा है और लड़का खड़ा मुस्कूरा रहा है। उसी लड़के की नस्ल से पैगम्बरों के सरदार और आखिरी नबी मोहम्मद साहब पैदा हुये और इस यादगार के लिये अल्लाह ने उनकी उम्मत को यह तोहफा अता किया। इस उम्मत का कोई भी मुसलमान कुर्बानी करेगा। तो उसे उस अजीम कुर्बानी के सवाब (पुण्य) के बराबर अता होगा जो हजरत इब्राहीम ने कुर्बानी की थी। इस त्योहार में हर वह मुसलमान जो आकिल बालिग मर्द औरत जिसके पास तकरीबन 25 हजार रूपया हो उसके ऊपर कुर्बानी वाजिब है। इसी वजह से हर मुसलमान इस दिन कुर्बानी करवाता है। जानवर जिब्ह करने के वक्त उसकी नियत होती है कि उसके अंदर की सारी बदअख्लाकी और बुराई सबकों मैने इसी कुर्बानी के साथ जिब्ह कर दिया और इसी वजह से मजहबे इस्लाम में ज्यादा से ज्यादा कुर्बानी का हुक्म किया गया है। कुर्बानी का अर्थ होता है कि जान व माल को खुदा की राह में खर्च करना। इससे अमीर, गरीब इन अय्याम में खास बराबर हो जाते है और बिरादराने इस्लाम से भी मोहब्बत का पैगाम मिलता है। कुर्बानी हमें दर्स देती है कि जिस तरह से भी हो सके अल्लाह की राह में खर्च करो। कुर्बानी से भाईचारगी बढ़ती है।
साहाबा ने अर्ज किया या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम यह कुर्बानी क्या है। आप ने फरमाया तुम्हारे बाप हजरत इब्राहीम की सुन्नत है। कुर्बानी हजरतें इब्राहीम की सुन्नत है जो इस उम्मत के लिए बरकरार रखी गयी है। और पैगम्बर साहब को इसका हुक्म दिया गया है। इर्शादे खुदावंदी है कि ऐ महबूब अपने रब के लिए नमाज पढ़ों और कुर्बानी करो। खास जानवर को खास दिनों में तकरीब (जिब्ह) की नियत से जिब्ह करने को कुर्बानी कहते है। हदीस में इसके बेशूमार फजीलतें आयी है। हदीस में आया है कि हुजूर ने फरमाया कि यौमे जिलहिज्जा (दसवीं जिलहिज्जा) में इब्ने आदम का कोई अमल खुदा के नजदीक खून बहाने यानि कुर्बानी करने से ज्यादा प्यारा नहीं है। वह जानवर कयामत के दिन अपने सींग और बाल और खुरों के साथ आयेगा और कुर्बानी का खून जमीन पर गिरने से पहले खुदा के नजदीक मकामें कुबूलियत में पहंुच जाता है। लिहाजा इसको खुशी से करो। दूसरी हदीस में आया है कि पैगम्बर साहब ने फरमाया कि जिसे कुर्बानी की ताकत हौ और वह कुर्बानी न करें। वह हमारी ईदगाहों के करीब न आये। एक और हदीस में पैगम्बर साहब ने फरमाया जिस ने खुश दिली व दिली तलबे सवाब होकर कुर्बानी की तो वह आतिशे जहन्नम से रोक हो जायेगा।
हुजूर ने इरशाद फरमाया कि जो रूपया ईद के दिन कुर्बानी मे खर्च किया गया उस से ज्यादा कोई रूपया प्यारा नहीं। एक हदीस में आया है कि पैगम्बर ने इरशाद फरमाया कि कुर्बानी तुम्हारे बाप हजरत इब्राहीम की सुन्नत है। लोगों ने अर्ज किया इसमें क्या सवाब है। फरमाया हर बाल के बदले नेकी है। अर्ज कि उनका क्या हुक्म है फरमाया उनके हर बाल के बदलें में नेकी है।
एक हदीस में आया है कि पैगम्बर ने फरमाया सबसे पहले जो काम आज हम करेंगे वह यह है कि नमाज पढ़ेगें फिर उसके बाद कुर्बानी करेंगे। जिसने ऐसा किया उसने हमारे तरीके को पा लिया और जिसने पहले जब्ह कर लिया वह गोश्त है जो उसने पहले से अपने घर वालों के लिए तैयार किया । कुर्बानी से उसका कुछ ताल्लुक नहीं है। एक मशहूर हदीस है कि पैगम्बर ने ईशाद फरमाया कि सींग वाला मंेढा लाया जायें जो स्याही में चलता हो (तीन बार इरशाद फरमाया), और स्याही में बैठता हो पेट स्याह हो और आंखे स्याह (काला) कुर्बानी के लिये हाजिर किया गया। हुजूर ने फरमाया छुरी लाव, फिर फरमाया इसको पत्थर पर तेज कर लो। फिर हुजूर ने छुरी ली और मेढें को लिटाया और उसे जिब्ह किया और दुआं की इलाही तू इसे को मेरे व मेरी आल और उम्मत की तरफ से कुबूल फरमा।
by syed farhan ahmad
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