बुधवार से होगी जियारत मोहर्रम में सात दिन होती जियारत सात दरवाजों का खुलेगा ताला गोरखपुर। मियां साहब इमामबाड़ा एक वाहिद इमामबाड़ा है जिसके अंदर सोने और चांदी की ताजिया हैं। इसे सात दरवाजों व सात तालों में बंद रखा जाता है। इसको देखने की ललक लोगों में पूरे साल बनी रहती है। लेकिन मोहर्रम के दिनों में इमामबाड़ा की शान ही कुछ और होती है। तीन से दस मोहर्रम की दोपहर तक लोग यहां ताजिए की जियारत करने आते है। इसका एक हिस्सा पूरे साल बंद रहता है। कई दरवाजों से गुजरने के बाद मोहर्रम के दिनों में इस हिस्से तक पहुंचा जा सकता है, जहां एक बड़े कमरे में सोने चांदी के दो ताजिए रखे हुए। कुछ लोग ताजियों को बाहर लगी जाली से देखते हैं तो कुछ एक-एक करके अंदर जाते हैं। अवध के नवाब ने दिया था 5.50 किलो सोने की ताजिया। बुजुर्ग की करामत सुनकर नवाब की बेगम ने इमामबाड़े में चांदी की ताजिया स्थापित कराया जो आज भी श्रद्धालुओं के लिए आस्था का प्रतीक है। मोहर्रम का चांद दिखने के बाद इमामबाड़ा स्टेट के उत्तराधिकारी सोने चांदी ताजिया वाले कमरे में चाबी लेकर पहुंचते है। दो रकात नमाज अदा करते हैं। उसके बाद सोने-...
गोरखपुर। भारत की पहली जंगे आजादी में हर कौम के जानिसारों ने बढ़कर हिस्सा लिया। उन्हीं में एक नाम है मोहम्मद हसन । इतिहासकारों ने इन्हें अपने अवराकों में जगह दी। पुस्तक द इण्डियन वार आफ इंडिपेन्डेंट में लेखक वीडी सरकार ने मोहम्मद हसन के कार्यों की प्रशंसा करते हुए लिखा कि वह अपनेे समय के सबसे प्रतिष्ठित देशभक्त थे। इतिहास के पन्ने बताते हैं कि पहली जंगे आजदी कीे बगावत मई 1857 के आखिरी हफ्तें में साफ नजर आने लगे थे। 10 मई 1857 ई. तक बैरक पुर छावनी में उठी विस्फोटक क्रांति दु्रत गतिसे पूरे देश में फैलने लगी। जिसका असर गोरखपुर में भी हुआ। 31 मई 1857 को पूर्व योजनानुसार तत्कालीन गोरखपुर के पैनाग्राम के क्रांतिकारियों ने सम्राट बहादुर शाह जफर के झण्डे तले ईस्ट इण्डिया कम्पनी के घृणित अधिपत्य को नकारते हुए नवाब के साथ होने का एलान कर दिया। उसी दिन क्रांतिकारियों ने गोरखपुर-पटना और गोरखपुर-आजमगढ़ का नदी द्वारा यातायात अवरूद्ध कर दिया। घाटों पर लदी नावों को एवं गोरखपुर से आजमगढ़ जाने वाले खजाने को लूट लिया गया। 6 जून 1857 नरहरपुर के राजा हरिसिंह ने इस अभियान में ...
गोरखपुर। 1857 की पहली जंगे आजादी में मुसलमानों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। अपनी अजीम कुर्बानिया पेश की। गोरखपुर की सरजमीं भी इससे खाली नहीं है। इसी सरजमीं पर शाह इनायत अली, सरफराज अली, बंधु सिंह, मोहम्मद हसन, सरदार अली सहित तमाम जानिसारों ने वतन की आबरू की हिफाजत के लिए अपना सबकुछ कर्बान कर दिया। बसंतपुर स्थित मोती जेल उन अजीम वतन परस्त रखवालों की दास्तां अपने दामन में छुपये हुये है। यहीं पर मौजूद है खूनी कुंआ, पाकड़ का पेड़ मौजूद है जिसमेें सैकड़ों देशभक्तों को फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया। राजा शाह इनायत अली शाहपुर स्टेट के राजा थे। बात 1857 की है। आजमगढ़ के अतरौलिया से 11 अंग्रेज अफसर गोरखपुर की सीमा में आना चाहते थे। कमांडर एलिस ने सरयू नदी पार कराने के लिए शाह को संदेशा भेजवाया और नाव उपलब्ध करने को कहा। शाह ने एक नाविक को अंग्रेज अफसरों को ले आने के लिए भेजा। उन्होंने नाविक को नदी के बीचोबीच पहुंचने पर नाव डुबाने का निर्देश दिया। नाविक ने वैसा ही किया। 11 अफसरों को नदी में डूबा कर मौत हो गई। इस घटना के बाद अंग्रेजों ने शाह को 1875 में इस्लामी तारीख के मुताबिक 23 ...
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