कुर्बानी के मुताल्लिक जरूरी मसायल
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गोरखपुर। मौलाना मोहम्मद अजहर शम्सी ने बताया कि जो मालिके निसाब अपने नाम से एक बार कुर्बानी कर चुका है और दूसरे साल भी वह मालिके निसाब है तो फिर इस पर अपने नाम से कुर्बानी वाजिब है। (अनवारूल हदीस)
बाज लोग यह ख्याल करते हैं अपनी तरफ से जिदंगी में सिर्फ एक बार कुर्बानी वािजब है यह शरअन गलत है और बेबुनियाद है इसलिए कि मालिके निसाब पर हर साल अपने नाम से कुर्बानी वाजिब है। (फतावा फैजे रसूल)
देहात में दसवीं जिलहिज्जा को सुबह सादिक के बाद ही से कुर्बानी करना जायज है लेकिन मुस्तहब यह है कि सूरज तुलू होने के बाद करें। (फतावा आलमगीरी)
रात में कुर्बानी करना मकरूह है। (फतावा फैजे रसूल)
शहर के आदमी को कुर्बानी का जानवर देहात में भेज कर नमाज ईद से पहले कुर्बानी करा कर गोश्त को शहर में मंगवा लेना जायज है। (बहारे शरीयत)
कुर्बानी का चमड़ा या गोश्त या इसमें से कोई चीज जब्ह करने वाले कसाब को मेहनताने के तौर पर देना जायज नहीं। (फतावा रजविया)
शहर में नमाजे ईदुल अज्हा से पहले कुर्बानी करना जायज नहीं है। (बहारे शरीयत)
गोरखपुर। मौलाना मोहम्मद अजहर शम्सी ने बताया कि जो मालिके निसाब अपने नाम से एक बार कुर्बानी कर चुका है और दूसरे साल भी वह मालिके निसाब है तो फिर इस पर अपने नाम से कुर्बानी वाजिब है। (अनवारूल हदीस)
बाज लोग यह ख्याल करते हैं अपनी तरफ से जिदंगी में सिर्फ एक बार कुर्बानी वािजब है यह शरअन गलत है और बेबुनियाद है इसलिए कि मालिके निसाब पर हर साल अपने नाम से कुर्बानी वाजिब है। (फतावा फैजे रसूल)
देहात में दसवीं जिलहिज्जा को सुबह सादिक के बाद ही से कुर्बानी करना जायज है लेकिन मुस्तहब यह है कि सूरज तुलू होने के बाद करें। (फतावा आलमगीरी)
रात में कुर्बानी करना मकरूह है। (फतावा फैजे रसूल)
शहर के आदमी को कुर्बानी का जानवर देहात में भेज कर नमाज ईद से पहले कुर्बानी करा कर गोश्त को शहर में मंगवा लेना जायज है। (बहारे शरीयत)
कुर्बानी का चमड़ा या गोश्त या इसमें से कोई चीज जब्ह करने वाले कसाब को मेहनताने के तौर पर देना जायज नहीं। (फतावा रजविया)
शहर में नमाजे ईदुल अज्हा से पहले कुर्बानी करना जायज नहीं है। (बहारे शरीयत)
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