

कुर्बानी के जानवर की उम्र महत्वपूर्ण होती है। ऊंट पांच साल, भंैस दो साल, बकरी व खशी एक साल । इससे कम उम्र होने की सूरत में कुर्बानी जायज नहीं, ज्यादा हो तो अफजल है। अलबत्ता दुम्बा या भेड़ छः माह का जो इतना बड़ा हो कि देखने में साल भर का मालूम हेाता हो उसकी कुर्बानी जायज है। कुर्बानी के जानवर को एैब से खाली होना चाहिए। अगर थोड़ा से एैब हो तो कुर्बानी हो जायेगी मगर मकरूह होगी और ज्यादा हो तो कुर्बानी होगी ही नहीं। अंधे जानवर की कुर्बानी जायज नहीं इतना कमजोर जिसकी हड्डियां नजर आती हो। और लगंड़ा जो कुर्बानी गाह तक अपने पांव से जा न सकें और इतना बीमार जिसकी बीमारी जाहिर हो जिसके कान या दूम तिहायी से ज्यादा कटे हो इन सब की कुर्बानी जायज नही। ऊंट और भैंस वगैरह में सात आदमी शिकरत कर सकते हैं जबकि उन सब की नियत तकरीब की हों। कुर्बानी और अकीका की शिरकत हो सकती है। जानवर को जिब्ह करने के बाद हाथ पांव कांटने से उस वक्त तक रूके रहे जबतक कि उसके तमाम आजार से रूह निकल न जायें। by syed farhan
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