




सैकडों सालों से हो रहा निमार्ण
चैथी मोहर्रम से शुरू होता है निमार्ण नौवीं को दर्शन के लिए आम
मिट्टी का प्रयोग नहीं होता
इसकी ताजिया की शोहरत दूर दूर तक है
मन्नतें होती है पूरी
आपने मोहर्रम महीने में ताजिया जरूर देखा होगा। ताजिया इमाम (इराक) स्थित रौजे का काल्पनिक चित्रण या प्रस्तुति है। लोग अपनी आस्था और हैसियत के हिसाब से ताजिया बनाते हैं और उसे कर्बला नामक स्थान पर ले जाते है। इमाम हुसैन की तुरबत जरी इमारत रौजा की शक्ल सोने, चाॅंदी, लकड़ी, बाॅस, कपड़े, कागज वगैरह से बनाते हैं। मियां साहब इमामबाड़े में रखे सोने-चांदी, लकड़ी की ताजिया की शोहरत दूर दूर तक फैली है। अकीदतमंद के लिय मोहर्रम में दर्शन आम होता है। लेकिन शहर में एक ऐसी भी ताजिया है जो इको फ्रैंडली (पर्यावरण के काफी करीब) है। जिसको देखकर प्राकृतिक लगाव हो जाता है। जिसे हर खासों आम में गेहूं की ताजिया के नाम से जाना जाता है। जो एक बार देखता है तो देखता ही रह जाता है। कल यानी रविवार से इस ताजिया का निर्माण शुरू हो जायेगा। फाइल फोटो
यकीन जानिए इस तरह की ताजिया पूरे हिंदोस्तान में कहीं नहीं बनती। जी हां हम बात कर रहे है पूर्वांचल की बड़ी व्यापारिक मंडी साहबगंज की। यहां गेहंू की ताजियां उम्दा कारीगरी और विज्ञान का उम्दा नमूना है।
ताजिया का निमार्ण
साहबगंज में स्थित इमामचैक पर गेहंू की ताजिया अपने आप में अनोखी और प्राकृतिक जुड़ाव अपने अंदर समेटे हुये है। सैकड़ों सालों से इस गेहूं की ताजिया का निमार्ण प्रत्येक मोहर्रम में किया जाता है। आठ फीट ऊंची गेहंू की ताजिया के निमार्ण में करीब 25 किलो गेहूं के उत्तम किस्म के दानों का प्रयोग किया जाता है। इस ताजिया निमार्ण में अहम भूमिका निभाने वाले साजिद अली ने बताया कि इसके निमार्ण में आठ से नौ हजार रूपये की लागत आती है। बांस का एक ढांचा तैयार किया जाता है। फिर बांस पर कपड़ा चढ़ाया जाता है। उसके बाद गेहूं के दानों को एक खास पदार्थ से सेट किया जाता है। तत्पश्चात् फिर हरे रंग का कपड़ा चढाया जाता है। उन्होंने बताया कि जो पदार्थ इसमें प्रयोग किया जाता है उसकी जानकारी इस ताजिया का निमार्ण करने वाले एवं इसके मुतवल्लियों के अलावा किसी को नहीं है। गेहूं के दानों को सेट करने में यह पदार्थ अहम भूमिका निभाता है। पदार्थ कितनी मात्रा व कितने वजन का होगा यह भी रहस्य है। उन्होंने आगे बताया कि हर दो घण्टे में इस ताजियांे को पानी व लोहबान का धुंआ दिया जाता है। हर दो घण्टे बाद आप इस गेहंू की ताजिया को देखगें तो परिवर्तित पायेेेंगे। एक बात और काबिले गौर है कि इसमें मिट्टी का प्रयोग नहीं किया जाता है।
ताजिया की शोहरत
इस इमाम चैक के वर्तमान मुतवल्ली हाजी जान मोहम्मद ने बताया कि उनके वंशजों ने इस ताजिया की निमार्ण सैकड़ों वर्षों पूर्व से शुरू किया जो आज भी जारी है। इस ताजियें की शोहरत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस ताजिया के निमार्ण अपने इलाके में करने के लिए अकीदतमंद अच्छी खासी रकम भी देने को तैयार है। मुतवल्ली हाजी जान का कहना है कि मुबंई, दिल्ली, हैदराबाद, लखनऊ से काफी लोगों ने उनसे सम्पर्क किया और बड़ी रकम देने की पेशकश की पर उन्होंने इस ठुकरा दिया। उन्होंने बताया कि इमाम हुसैन का करम है कि अन्य दिनों में यह प्रयोग किया जाये ंतो सफल नहीं होता है। लेकिन मोहर्रम के पांच दिनों के अंदर ताजिया मुकम्मल तैयार हो जाती है। इस ताजियां का दीदार करने के बाद आप इसे देखते रह जायेंगे। मोहर्रम में यह ताजिया हिंदू मुस्लिम एकता का केंद्र बन जाती है। इस इमाम चैक के किरायेदार केसरीचंद मोहर्रम शुरू होते ही अपना कारोबार समेट इसमें सहयोग करते है। वर्तमान मुतवल्ली ने बताया कि वर्षों पहले विदेशीयों का एक गु्रप भारत भ्रमण के दौरान जनपद आया था उसने इस ताजियों को देख आश्चर्यता प्रकट करते हुए तारीफ की थी।
ताजिया का दर्शन
चैथी मोहर्रम से इसको बनाने का कार्य शुरू होता है। नौवीं मोहर्रम का आमजन के लिए खोल दिया जाता है। यहां प्रत्येक धर्म के लोग आते है और मन्नतें मानते है। मन्नतें पूरी होने पर चांदी का पंजा, आंख, व छोटी ताजिया चढाते है। यहां बराबर इमाम हुसैन उनके जानिंसारों के इसाले सवाब के लिए फातिहा ख्वानी होती रहती है। जहां अन्य ताजियों को बनाने में काफी समय लगता है वहीं यह ताजिय महज पांच दिनों में जनता दर्शन के लिए मुकम्मल हो जाती है। मोहर्रम की दसवीं तारीख को राप्ती में प्रवाहित कर दिया जाता है।
वैज्ञानिक भी आश्चर्य करते हैं
आज से 25 वर्ष पूर्व 12 फीट की ताजिया का निमार्ण होता था। जिसमें चालीस किलो गेहूं के दानों का उपयोग किया जाता था। बाद में ताजिया की ऊंचाई 8 फीट कर दी। उन्होंने बताया कि वैज्ञानिक आश्चर्य करते है कि गेहूं के दाने को बांस पर फीट कैसे करते है। खालिद महमूद बताते है कि मेरे पिता बताते थे कि गेंहू की ताजिया का नाम लोग सुनकर उत्सुक हो जाते है कि कैसे बनती होगी। जब दीदार करते है तो निगाहें हटती ही नहीं है।
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