
जिस्म से लहू टपक रहा था पर किसे फिक्र थी...। जुबां पर एक ही लफ्ज या हुसैन या हुसैन या हुसैन। सदा जैसे-जैसे बुलंद हो रही थी। जंजीर और कमा छोटा चाकू उतनी ही तेजी से जिस्म पर गिर रहे थें। नौजवान तो थे ही छोटे भी बच्चे जुनूनी हो गए थें। यह मंजर था चैथी के मातमी जुलूस का। कर्बला के मैदान में 72 जानिसार साथियों के साथ हजरत इमाम हुसैन की शहादत के गम में रविवार को बसंतपुर से हाजी मो. मेंहदी एडवोकेट के आवास से अलम का मातमी जुलूस निकला। जुलूस में अंजुमन हुसैनिया के सदस्यों ने नौहाख्वानी और सीनाजनी की । यह जुलूस बसंतपुर, हैदर बाजार, हाल्सीगंज, उर्दू बाजार, घंटाघर, रेती चैक होते हुए इमामबाड़ा आगा साहेबान गीता प्रेस पहंुचा।
इस मौके पर हाजी मो. मंेहदी एडवोकेट ने कहा कि आज से चैदह साल पहल हर जब्र नाइंसाफी व आतंकवाद के खिलाफ हुसैन ने यजीद के खिलाफ आवाज उठायी थी, और यजीद की लाखों फौजों के सामने अपने चंदसाथियों के साथ कर्बला के मैदान में जंग लड़ी और बलिदान देकर इंसानियत को जिंदा रखा। हर दौर में इमाम हुसैन की कुर्बानी का महत्व रहा है। और ताकयामत तक रहेगा। इस्लाम धर्म ही इंसाफ का नाम है। इमाम हुसैन की कुर्बानी ने इंसानियत का पैगाम दिया। इस मौके पर रफत अब्बास, अफरोज आलम, तकी रिजवी, सैयद सिब्ते हसन रिजवी, एजाज रिजवी, अलमदार हुसैन रिजवी, सैफ हसन, अशफाक हैदर, नायाब हैदर, आमिश, दिलशाद, शादाब, मोहसिन, सलमान, अली अब्बास, ताहा, तालिब, अली अब्बास, शामू, दानिश फहीम, सनी, लकी, फिरोज, हमजा, जमशेद, सोनू सहित तमाम लोग मौजूद रहे।
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