
हजरत इमाम हंुसैन 3 जिलहिज्जा सन् 60 हिजरी को अपने अहले बैत मवाली व खुद्दाम को हमराह ले कर मक्का शरीफ से इराक कीतरफ रवाना हो गए। सन् 61 हिजरी मुताबिक सन् 681 ई0का आगाज हो चुका था।मोहर्रम सन् 61 हिजरी 2 तारीख बरोज जुमेरात मुताबिक 20 अक्टूबर के दिन करबला पहुंचे।सातवीं मोहर्रम से जालिमों ने पानी बंद कर दिया।नहरे फुरात पर 500 फौजियों को लगा दियागय तााकि इमाम हुसैन का काफिला पानी न पी सकें। 9 मुहर्रमुल-हराम सन्61 हिजरी जुमेरात शाम के वक्त इब्न-साद ने अपने साथियों को इमाम हुसैन के कााफिले पर हमला करने का हुक्म दिया।
आशूरह मुहर्रम की रात खत्म हुई और दसवीं मुहर्रम सन् 61 हिजरी मुताबिक 28 अक्टूबर सन् 681 ई0 की कयामत नुमा सुबह नमूदार हुई। इमाम हुसैन के अहले बैत व जांनिसार एक-एक कर शहीद हो गए आखिर में हजरत इमाम हुसैन अपने खेमे में तशरीफ लाये। सन्दूक खोला। कुबाए मिस्री जेबे तन फरमाई। अपने नाना जाना पैगम्बर साहब का अमामए मुबारक सर पर बांधा। सैयदुश्शुहदा हजरत अमीर हमजा रजियल्लाहु अन्हु की ढाल पुश्त पर रखी। शेरे खुदा हजरत सैयदुना अली की तलवार जुलफिकार गले हमाइल की और हजरत जाफर तय्यारका नेजा हाथ में लिया। ओर अपने बिरादरे अकबर इमाम हसन का पटका कमर में बांधा। इस तरह शहीदों के आका, जन्नत के नौजवानों के सरदार सब कुछ राहे हक में कुरबान करने के बाद अब अपनी जाने अजीज का नजराना पेश करने के लिए तैयार हो गए।तीन दिन के भूखे प्यासे और अपनी निगाहों के सामने अपने बेटों भाईयों भतीजों और जां निसारों को राहे हक में कुर्बान कर देने वाले इमाम। पहाडों की तरह जमीहुई फौजों के मुकाबले में शेर की तरह डट कर खडे हो गए और मैदाने करबला में एक वलवला अंगेज रिज़्ज़ पढी जो आपके नसब और जाती फजाइल पर मुशतमिल थी और उसमें शामियों को रसुूले करीम की नाखुशी व नाराजगी और जुल्म केअंजाम से डराया था। उसके बाद आपने एक फसीह व बलीग तकरीर फरमाई। और जबरदस्त मुकाबला हक और बातिल के बीच शुरू हुआ। तीर नेजा और शमशीर के बहत्तर (72) जख्म खाने के बाद आप सज्दे में गिरे और अल्लाह का शुक्र अदा करते हुए वासिले बहक हो गए। 65 साल 5 माह 5 दिन की उम्र शरीफ में जुमा के दिन मुहर्रम की दसवीं तारीखें सन् 61 हिजरी मुताबिक 681 इमाम आली मकाम इस दारे फानी से रेहलत फरमा गए।
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