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शरीयत में मुस्लिम महिलाएं खुश, इसी का पालन करेंगी : फारिहा

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फाइल फोटो -मुस्लिम महिला सम्मेलन गोरखपुर। इस्लामिक एजुकेशनल रिसर्च आर्गनाइजेशन इलाहाबाद की फारिहा बिन्ते हकीमुल्लाह ने कहा कि तीन तलाक के मसले पर मुस्लिम महिलाओं को सरकार का फैसला मंजूर नहीं हैं। मुस्लिम महिलाएं शरीयत पर ही अमल करेंगी। सरकार इस मामले में दखल न दें। जब हमें कोई परेशानी नहीं तो सरकार को शरीयत में दखल नहीं देना चाहिए।  हमें मजहबी हक संविधान देता हैं। उन्होंने कहा कि तलाक का मामला बहुत संवेदनशील हैं। यह खुदा द्वारा दी गयी राह हैं, अगर किसी  मर्द या औरत के दरमियान इतने काम्पलिकेशन आ जायें कि अब उनका रहना दुश्वार हो जायें तो तलाक के जरिए अलग हो सकते हैं। लेकिन जो तरीका हैं इस्लाम का , अगर आप सोचेंगे समझेंगे तो तलाक की नौबत ही नहीं आयेगी। क्योंकि जिस तरह इस्लाम ने बताया कि शौहर और बीवी के बीच कोई प्राब्लम आयें तो पहले वह बैठकर डिस्कशन करें। शौहर बीवी को समझायें।बड़ों के सामने बात रखी जायें।जब सारा तरीका नाकाम हो जायें और फिर कोई राह नहीं निकल रही हो तब तलाक की प्रक्रिया होगी । फारिहा सोमवार को ऊंचवा स्थित आईडीयल मैरेज हाउस में इराकी वेलफेयर सोसाइटी के मुस्लिम...

Exclusive : गोरखपुर की मुस्लिम महिलाएं मुस्लिम पर्सनल लॉ के स्पोर्ट् में, शपथ पत्र भरना शुरु किया

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गोरखपुर की मुस्लिम महिलाएं मुस्लिम पर्सनल लॉ के स्पोर्ट् में , शपथ पत्र भरना शुरु किया -शरीयत मुस्लिम महिलाओं की आबरु हैं, इसमें दखल कबूल नहीं, -सोमवार को धर्म गुरुओं की बैठक गोरखपुर। शहर की महिलाएं शरीयत में दखलअंदाजी के खिलाफ हैं। उनका कहना हैं कि शरीयत अल्लाह व रसूल का दिया हुआ कानून हैं इसमें कोई तब्दीली बर्दाश्त नहीं की जायेगी। महिलाओं ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा जारी प्रोफार्मा (शपथ पत्र)  भरना शुरु कर दिया हैं। हालंकि यह शपथ पत्र अभी व्यक्तिगत तौर पर लोग खुद रुचि लेकर भर रहे हैं।  सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार शपथ पत्र बांटने व भरवाने के अभियान को  धार देने के लिए सोमवार को प्रात: 10 बजे ऊंचवां स्थित नासिर लाइब्रेरी में तमाम मकतबें फिक्र के मुस्लिम धर्मगुरुओं व बुद्धजीवियों की बैठक होगी। इसके बाद शहर से गांव तक इस अभियान में तेजी लाने पर रणनीति बनायी जायेगी। एआईएमपीएलबी का शपथ पत्र विभिन्न सोशल मीडिया सहित अन्य माध्यमों से मुस्लिम घरो में पहुंच रहा है।  लोगों ने भरना शुरु कर दिया हैं। ये शपथ पत्र भरकर 12 नवंबर से पहले एआईएमप...

शहाना अंदाज में निकला मियां साहब का शाही जुलूस

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शहाना अंदाज में निकला मियां साहब का शाही जुलूस  - जोरदार खैरमकदम -  नौवीं मुहर्रम के जुलूस में उमड़ी भारी भीड़ गोरखपुर। इमामबाडा स्टेट से निकलने वाला नौवीं मुहर्रम का रिवायती शाही जुलूस मंगलवार की रात पूरे लाव लश्कर के साथ निकला।  इमामबाड़ा स्टेट के सज्जादानशीन अदनान फर्रूख शाह उर्फ मियां साहब की अगुवाई में निकले जुलूस में बड़ी संख्या में लोग शमिल हुए। जगह-जगह जुलूस का जोरदार खैरमकदम (स्वागत) किया गया। रात 12.30 बजे के बाद  मियां साहब अपने काफिले के साथ जुलूस लेकर इमामबाड़े स्टेट के पश्चिमी गेट से निकलें । काफिले में बैंडबाजा, परंपरागत ढोल ताशा के साथ उनके निजी सुरक्षा गार्ड रंग-बिरंगे पोशाक में जुलूस की शोभा बढा रहे थें। जुलूस सबसे पहले कमाल शहीद के मजार पर पहुचा जहां मियां साहब ने अपने साथियों के साथ फातेहा पढ़ी। चौराहिया गोला में लोगों ने मियां साहब का जबरदस्त इस्तकबाल किया गया और जुलूस में शामिल हो गए। बक्शीपुर इमामबाड़ा पहुंचने पर लोगों ने मियां साहब को फूल मालाओं से लाद दिया । इस्माईलपुर और नखास पर भी जुलूस का स्वागत किया गया। बक्शीपुर से निकलने...

इमामचौकों पर रखे गए ताजिया, हुई नियाज फातिहा

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हजरत इमाम हुसैन व अहले बैत के नाम से दिलायी गयी फातिहा, मेले का उठाया लुत्फ गोरखपुर। नौवीं मुहर्रम को तमाम इमामचौकों पर ताजिया रख दिए गए। हजरत इमाम हुसैन व उनके साथियों के नाम से फातिहा दिलायी। घरों में मलीदा, शर्बत व खिचड़ा बनाकर गरीबों में बांटा गया। अकीदतमंदों ने इमामचौकों पर बड़े ताजिया के साथ छोटे ताजिया मन्नत के तौर पर रखे। घरों व मस्जिदों में जिक्रे हुसैन की महफिल हुई। करबला की दास्तान बतायी गयी। वहीं इमामबाड़ा स्टेट में मेला अपने शबाब पर हैं। जहां लोग हजरत रौशन अली शाह रह. की मजार पर फातिहा पढ़ रहे थे वहीं लोग सोन् चांदी की ताजिया का दीदार भी कर रहे थे। खरीददारी भी जमकर हो रही थी। कई सामानों पर भारी छूट दी जा रही थी। पूरी रात मेला परिसर लोगों से भरा रहा। बक्शीपुर, अस्करगंज, मियां बाजार, छोटे काजीपुर, खुनीपुर, रहमतनगर सहित तमाम मुहल्लों के जुलूस निकले। देर रात लाइन की ताजिया का जुलूस निकला। जिसमें 250 से ज्यादा ताजियां आकर्षण का केंद्र रही। लाइन की ताजियों का यह जुलूस गोलघर, बनकटी चक, रेलवे कालोनी, बिछिया कालोनी, घोषी पुरवा, गोरखनाथ, रसूलपुर, हुमायूंपुर सहित तमाम जगहों से...

जिसके कदमों से जन्नत बनी करबला...उस हुसैन इब्ने हैदर पे लाखों सलाम

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जिसके कदमों से जन्नत बनी करबला...उस हुसैन इब्ने हैदर पे लाखों सलाम गोरखपुर। टूटे हुए दिलों का सहारा हुसैन है। डूबे न जो फलक पे वह तारा हुसैन है।। अहले खि़रद समझ न सके क्या हुसैन है। नाना के जिस्मे पाक का साया हुसैन है। ईमान और कुफ्र में निस्बत कोई नहीं। दुनिया है रात और सवेरा हुसैन है।। यह भी तुम्हें ख्याल न आया यजीदियों। सरकारें दो जहां का नवासा हुसैन है।।  होकर शहीद, जिन्दगी- ए- जाविंदा मिली। जिन्दा था और आज भी जिन्दा हुसैन है।। // // जिसको झूला फरिशते झूलाते रहे। लोरियां दे के नूरी सुलाते रहे। जिसको सीने से आका लगाते रहे। उस हुसैन इब्ने हैदर पे लाखों सलाम। तीन दिन भूखा-प्यासा जो रखा गय। जो रहा पैकरे शाने सब्र व रज़ा। जिससे राजी था लारैब उसका खुदा। जिसके कदमों से जन्नत बनी करबला। उस हुसैन इब्ने हैदर पे लाखों सलाम// ऐ करबला की खाक़! उस एहसान को न भूल। तड़पी है तुझ पे लाशे जिगर गोशए रसूल। इस्लाम के लहू से तेरी प्यास बुझ गई। सैराब कर गया तुझे खूने रगे रसूल।// तेरी कुर्बानी ने जिन्दा कर दिया इस्लाम को। वह रहेगा ता अबद तेरी बदौलत ऐ हुसैन! मिल्लते इस्लाम को मिलता है...

मुहर्रम में यह काम करेंगे मिलेगा सवाब

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मुहर्रम में यह काम करेंगे मिलेगा सवाब मुहर्रम  के दसों दिन खुसूसन आशूरह के दिन मजलिस मुनअकिद करना और सही रिवायतों के साथ हजरत सैयदना इमाम हुसैन व शोहदाए करबला के फजाइल और वाकियाते करबला बयान करना जायज व बाइसे सवाब है। हदीस शरीफ में है जिस मजलिस में सालिहीन का जिक्र हो, वहां रहमत का नुजूल होता है। ------------------  आशूरह के दिन दस चीजों को उलमाए किराम ने मुस्तहब लिखा है। बाज उलमा ने उसे इरशादे रसूल और बाज नेउसे हजरत अली का कौल बताया है। बहरहाल ! यह सब काम अच्छे काम है, उनको करना चाहिए।रोजा रखना,सदका करना, नवाफिल पढ़ना, एक हजार मर्तबा सूरः इख्लास पढ़ना, उलमा और औलिया की जियारत करना, यतीमों के सर पर हाथ रखना, अपने घर वालों पर खाने में वुस्अत व फराखी करना,सुरमा लगाना, गुस्ल करना, नाखुन तराशना और मरीजों की बीमार पुर्सी करना , इमाम आली मकाम व दीगर के नाम की फातिहा करना।

क्या आपने देखी है भारत में सैकड़ों सालों से बन रही गोरखपुर की गेहूं की ताजिया

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क्या आपने देखी है भारत में सैकड़ों सालों से बन रही गोरखपुर की गेहूं की ताजिया -चौथी मुहर्रम से शुरू होता  निमार्ण नौवीं (अाने वाले मंगलवार) को दर्शन के लिए आम -मिट्टी का प्रयोग नहीं होता - ताजिया की शोहरत दूर दूर तक -मन्नतें होती  पूरी SYED FARHAN AHMAD  गोरखपुर। आपने मुहर्रम माह में ताजिया जरूर देखा होगा। आज हम आपको बता रहे भारत में सैकड़ों से सालों से तैयार हो रही गेहूं की ताजिया के बारे में। जो बनती है सिर्फ गोरखपुर में। मियां साहब इमामबाड़े में रखे सोने-चांदी, लकड़ी की ताजिया  की तरह दूर तलक इस  इको फ्रैंडली गेहूं की ताजिया की भी  शोहरत है। यह ताजिया तैयार होती है पूर्वांचल की बड़ी व्यापारिक मंडी साहबगंज में। गेहूं की ताजियां उम्दा कारीगरी और विज्ञान का उम्दा नमूना। साहबगंज में स्थित इमामचैक पर गेहूं  की ताजिया अपने आप में अनोखी और प्राकृतिक जुड़ाव अपने अंदर समेटे हुये है। सैकड़ों सालों से इस गेहूं की ताजिया का निमार्ण प्रत्येक मुहर्रम में किया जाता है। आठ फीट ऊंची गेहूं की ताजिया के निमार्ण में करीब 25 किलो गेहूं के उत्तम किस्म के...

शान से निकला मियां साहब का रिवायती शाही जुलूस

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पांचवी का रिवायती शाही जुलूस शाही अंदाज में निकला मियां साहब का जुलूस  इस्तकबाल में उमड़ी भीड़ गोरखपुर। मियां साहब इमामबाड़ा स्टेट गोरखपुर से पांचवी मोहर्रम का शाही जुलूस अपनी पुरानी रिवायत के मुताबिक परम्परागत तरीके से अपनी पूरी शानों शौकत के साथ शुक्रवार को निकाला गया। जगह-जगह जुलूस का जोरदार खैरमकदम (स्वागत) किया गया। सुबह से सड़कें पर नजर टिकी हुई थी। इंतजार हो रहा था फौज का। सफेद लिबास, खाकी वर्दी, घुड़सवार और सभी के हाथों में फौजियों वाले भाले, बंदूकें, बीच में लकदक सफेद लिबास में चल रहे मियां साहब जैसे ही दिखे.....शोर उठा मियां साहब आ गए। अहिस्ता-अहिस्ता कदम बढ़ा रहे मियां साहब को देखने क लिए भीड़ बेताब हो उठी। जुलूस गुजरा तो लोग पीछे-पीछे चलने लगे। एक कारवां चल पड़ा जो कि फिर इमामबाड़ा में ही पहुंच कर समाप्त हुआ। बीते तीन सौ साल से निकल रहे मियां साहब के पांचवी का जुलूस पश्चिमी फाटक से सुबह 9 बजे निकला। जुलूस में चल रहे मियां साहब ने कमाल शाह की मजार पर फाातिहा पढ़ा। इसके बाद जुलूस बक्शीपुर की ओर मुड़ा। जुलूस के सबसे आगे इमामबाड़ा स्टेट का परचम और उनके पीछ...

कैसे भूलें हम तेरा यौमे शहादत ऐ हुसैन!

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 गोरखपुर । तेरी कुर्बानी ने जिन्दा कर दिया इस्लाम को।  वह रहेगा ता अबद तेरी बदौलत ऐ हुसैन! मिल्लते इस्लाम को मिलता है एक दर्से ह्या! कैसे भूलें हम तेरा यौमे शहादत ऐ हुसैन! हाल मेरा कुछ भी हो, मेरा अकीदा है यही! बख्शवाएगी मुझे तेरी मोहब्बत ऐ हुसैन। मदरसा दारुल उलूम हुसैनिया दीवान बाजार के सहायक अध्यापक मोहम्मद आजम ने किताबों के हवाले से बताया कि मुखबिरे सादिक गैब दा नबी ने अपने नवासे इमाम हुसैन की पैदाइश के साथ ही आपकी शहादते उजमा के बारे में खबर दे दी थी। हजरत अली, हजरत फातिमा, हजरत हसन और खुद इमाम हुसैन भी जानते थे कि एक दिन करबला के मकाम पर शहीद किया जाऊंगा। लेकिन किसी ने भी और खुद इमाम हुसैन ने भी कभी किसी किस्म का शिकवा जुबान पर नहीं लाया। बल्कि निहायत खन्दा पेशानी के साथ अपनी शहादत की खबर सुनते रहे।  हदीस शरीफ में आया है कि हजरत उम्मे फजल बिन्ते हारिस पत्नी हजरत अब्बास फरमाती है कि मैंने एक रोज पैगम्बर साहब की खिदमत में हाजिर होकर हजरत इमाम हुसैन को आपकी गोद में दिया फिर मैं क्या देखती हूं कि पैगम्बर साहब की आंखों से लगातार आंसू बह रहे है। मैंने ...

जानिए मियां साहब के ऐतिहासिक गश्त व शाही जुलूस के बारे में

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इमामबाड़े में ऐतिहासिक गश्त आज से शुरू शाही जुलूस पांच मुहर्रम से गोरखपुर। इममाबाड़ा परिसर में मियां साहब का गश्त मुहर्रम की तीन, चार, छह, सात एवं आठ तारीख की शाम से शुरू होता है। मियां साहब का गश्ती जुलूस उनके सहयोगियों के साथ पूरे इमामबाड़े का गश्त करते हुए पश्चिम फाटक से निकल कर उत्तर फाटक से प्रवेश करता है और फातिहा के बाद समाप्त होता है। मियाॅं साहब का जुलूस मुहर्रम की पांच, नौ एवं दस तारीख को इमामबाड़े से बाहर निकलता है तथा अपने पूर्व निर्धारित मार्गाें से होता हुआ इमामबाड़े में प्रवेश करता है। मियां साहब के शाही जुलूस को देखने के लिए दूर-दराज के इलाकों से भारी संख्या में बच्चे, बूढ़े जवान एवं महिलाओं की भीड़ उमड़ पड़ती है। मुहर्रम हजरत इमाम हुसैन एवं उनके साथियों की कर्बला के मैदान में हुई उनकी शहादत की याद में उनको खेराजे अकीदत पेश करने के लिए याद किया जाता है।

जानिए कब होगी मियां साहब की गश्त, कब निकलेगा शाही जुलूस

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इमामबाड़े में ऐतिहासिक गश्त आज से शुरू शाही जुलूस पांच मुहर्रम से गोरखपुर। इममाबाड़ा परिसर में मियां साहब का गश्त मुहर्रम की तीन, चार, छह, सात एवं आठ तारीख की शाम से शुरू होता है। मियां साहब का गश्ती जुलूस उनके सहयोगियों के साथ पूरे इमामबाड़े का गश्त करते हुए पश्चिम फाटक से निकल कर उत्तर फाटक से प्रवेश करता है और फातिहा के बाद समाप्त होता है। मियाॅं साहब का जुलूस मुहर्रम की पांच, नौ एवं दस तारीख को इमामबाड़े से बाहर निकलता है तथा अपने पूर्व निर्धारित मार्गाें से होता हुआ इमामबाड़े में प्रवेश करता है। मियां साहब के शाही जुलूस को देखने के लिए दूर-दराज के इलाकों से भारी संख्या में बच्चे, बूढ़े जवान एवं महिलाओं की भीड़ उमड़ पड़ती है। मुहर्रम हजरत इमाम हुसैन एवं उनके साथियों की कर्बला के मैदान में हुई उनकी शहादत की याद में उनको खेराजे अकीदत पेश करने के लिए याद किया जाता है।

जानिए कब होगी मियां साहब की गश्त, कब निकलेगा शाही जुलूस

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इमामबाड़े में ऐतिहासिक गश्त आज से शुरू शाही जुलूस पांच मुहर्रम से गोरखपुर। इममाबाड़ा परिसर में मियां साहब का गश्त मुहर्रम की तीन, चार, छह, सात एवं आठ तारीख की शाम से शुरू होता है। मियां साहब का गश्ती जुलूस उनके सहयोगियों के साथ पूरे इमामबाड़े का गश्त करते हुए पश्चिम फाटक से निकल कर उत्तर फाटक से प्रवेश करता है और फातिहा के बाद समाप्त होता है। मियाॅं साहब का जुलूस मुहर्रम की पांच, नौ एवं दस तारीख को इमामबाड़े से बाहर निकलता है तथा अपने पूर्व निर्धारित मार्गाें से होता हुआ इमामबाड़े में प्रवेश करता है। मियां साहब के शाही जुलूस को देखने के लिए दूर-दराज के इलाकों से भारी संख्या में बच्चे, बूढ़े जवान एवं महिलाओं की भीड़ उमड़ पड़ती है। मुहर्रम हजरत इमाम हुसैन एवं उनके साथियों की कर्बला के मैदान में हुई उनकी शहादत की याद में उनको खेराजे अकीदत पेश करने के लिए याद किया जाता है।

गोरखपुर मियां साहब इमामबाड़ा के पांच सज्जादानशीन

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गोरखपुर मियां  साहब इमामबाड़ा के पांच सज्जादानशीन गोरखपुर। इस ऐतिहासिक इमामबाड़े की देख-भाल सूफी रौशन अली शाह करते रहे। इतिहासकार डा. दानपाल सिंह की किताब गोरखपुर-परिक्षेत्र का इतिहास (1200-1857 ई. ) खण्ड प्रथम में गोरखपुर और मियां साहब नाम से पेज 65 पर है कि यह एक धार्मिक मठ है जो गुरू परम्परा से चलता है। 1816 ई. में रौशन अली शाह के शिष्य व भतीजे सैयद अहमद अली शाह इस इमामबाड़े के उत्तराधिकारी हुए। इन्होंने ही मियां साहब की उपाधि धारण की जो शिष्य परम्परा से चली आ रही है। डा.दरख्शां ताजवर ने इतिहास के आईने में बताया कि इनके पिता का नाम सैयद फौलाद अली था। सैयद रौशन अली शाह ने सैयद अहमद अली शाह की देखभाल अपने जिम्मे ली। बाबा की शगिर्दी में अहमद अली शाह की तरबीयत हुई। सैयद अहमद अली ने अपनी मेहनत व सलाहियत से अपने इल्म को निखारा। 17 साल की उम्र में शेरों शायरी शुरू की। उन्होंने उर्दू, अरबी, फारसी तीनों जुबानों में महारत हासिल की। उन्होंने कई किताबें लिखी। पहली किताब लगभग सन् 1860 में कशफुल बगावत लिखी जो 1857 के जंगे आजादी पर थी। दूसरी किताब नूरे हकीकत जो लगभग सन् 1861 में लिखी। इ...

जानिए कौन है हजरत रौशन अली शाह, अवध का नवाब भक्त कैसे बना, तीन सौ साल से कैसे जल रही है धूनी

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जानिए कौन है हजरत रौशन अली शाह, अवध का नवाब भक्त कैसे बना, तीन सौ साल से कैसे जल रही है धूनी गोरखपुर। मियां साहब इमामबाड़ा की ख्याति सूफीसंत सैयद रौशन अली शाह की वजह से दूर-दूर तक है। वह हमेशा खुदा की इबादत में लगे रहते थे। उन्हें अहले बैत से मोहब्बत थी। इमाम हुसैन रजिअल्लाहु तआला अन्हु व उनके साथियों की फातिहा के लिए इमामबाड़ा स्थापित किया। तारीख के आईने में एक वाकिया बहुत मशहूर है । मामला यूं है कि अवध के पहले नवाब बुर्हानुल मुल्क शहादत खां को 1719 ई.में दूसरे नवाब सफदरजंग को 1737 ई. में इसके बाद तीसरे नवाब के रूप में शुजाउद्दौला को 1753 ई. में नवाबी मिली। 1764 ई. में अवध के नवाब एवं अंग्रेजों में बक्सर का युद्ध हुआ, जिसमें अवध का नवाब शुजाउद्दौला पराजित हुआ। 1775 में शुजाउद्दौला की मृत्यु हुई। चैथे नवाब आसफ-उद्दौला को 1775 ई. में अवध की नवाबी मिली। नवाब आसफ-उद्दौला शिकार के बेहद शौकीन थे। रिवायत के मुताबिक 1784 ई में सर्दी के मौसम में अवध के नवाब शिकार खेलने गोरखपुर आये। उस वक्त अवध की राजधानी फैजाबाद हुआ करती थी। हाथी पर शिकार करते हुए वह गोरखपुर के घने जंगलों में आ गये। इसी घ...