मदरसे हो गए राजनीति के शिकार

 

`गोरखपुर शहर के एक मदरसे की कहानी` 

`उसी मदरसे के बच्चों की जुबानी`


बच्चे आपस में मशवरा करते हुए

यार ये दरवाजा टूटे हुए महीनों हो गए किसी की नजर अभी तक इस पर नही पड़ी क्या किया जाए रात में सोते हुए डर लगता है कही कोई जानवर ना आ जाए चलो चलते है सब मिलकर प्रिंसिपल साहब को बता हैं हमारे रूम का दरवाजा कई महीने से खराब है उसको बदलवा दीजिए,

*अब सारे बच्चे एक साथ प्रिंसिपल के ऑफिस में पहुंचे है*

*तलबा (छात्र)* अस्सलामो अलैकुम हजरत

*प्रिंसिपल* वा अलैकुम अस्सलाम क्या बात है 

*तलबा* हजरत हमारे रूम का दरवाजा खराब हो गया है उसको बदलवा दीजिए

*प्रिंसिपल* बिना दरवाजे का नही रह सकते क्या

*तलबा* हजरत डर लगा रहता है कोई जानवर ना आ जाए

*प्रिंसिपल* मदरसा है कोई चिड़ियाघर नही

*तलबा* हजरत बिल्ली रात को रूम में आ जाती है कभी सर के पास कभी पैर के पास दहशत होती है

*प्रिंसिपल* तो चादर ओढ़ कर सो जाया करो

*तलबा* हजरत चादर गंदी हो जाती है

*प्रिंसिपल* मदरसे में पानी नहीं है क्या धुल लिया करो 

*तीसरा आदमी* अरे लगवा दीजिए बच्चे परेशान होते होंगे

*प्रिंसिपल* अरे आप नही जानते बड़े कमीने बच्चे हैं दरवाजा तोड़ देते हैं

*तलबा* हजरत चल कर एक बार देख लीजिए कोई तोड़ा नही है वो लकड़ी ही सड़ गई है

*प्रिंसिपल* चलो जाओ तुम लोग अब यहां से


नोट:- मदरसे के नाम पर लाखों करोड़ों चंदा करने वाले मदरसे में पढ़ रहे तलबा की जरूरत को पूरा करने के बजाए अपनी जरूरतों को पूरा करने में लगे हुए है *इल्ला माशा अल्लाह*

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