
दीवान बाजार में जमींदोज मस्जिद का मामला
झांड झंखाड़ की वजह से नहीं पता चलता वजूद
जिलाधिकारी, एसएसपी, नगर निगम, सिटी मजिस्टेªट के खिलाफ हाईकोर्ट में है रिट
गोरखपुर। ये सितम नहीं तो और क्या है कि हिन्दुस्तान के बटवांरे क बाद मुल्क में हजारों मस्जिदें अब तक आजाद नहीं हो सकी है। उन्हीं में से एक मस्जिद गोरखुपर के दीवान बाजार मुहल्ले में मौजूद है। जो खंडहर की शक्ल अख्तियार कर चुकी है। हालांकि इस विवादित मामलें मंे हाईकोर्ट ने मस्जिद के हक मंे तारीखी फैसला दे दिया है। इसके बावजूद हाईकोर्ट के फैसले पर अमल नहीं हो सका है। मस्जिद पक्षकार ने जिलाधिकारी, एसएसपी, नगर निगम, सिटी मजिस्टेªट को पार्टी बनाकार हाईकोर्ट में कब्जे के लिए रिट दाखिल की जिसकी सुनवाई जारी है।
मिली जानकारी के अनुसार इस मस्जिद को पुरानी मस्जिद दीवान बाजार के नाम से जाना जाता है। जिस का आराजी नं. 201, 202 है। जबकि पुराना आराजी नं. 141, 140 है। सन् 1980 में वक्फ बोर्ड ने इस मस्जिद के तौर पर वक्फ नं. 37 एलाॅट करते हुए इस को मुतवल्ली भी नियुक्त किया।
बताया जाता है कि वतन के बटवांरे के बाद मस्जिद की देखभाल करने वाला कोई नहीं रहा तो ये खंडहर की शक्ल अख्तियार करती चली गयी और दो लोगों ने इस पर कब्जा करने की कोशिश की। लेकिन जब मुसलमानों को इस मस्जिद के बारे में मालूम हआ और मस्जिद की पुनः तामीर करने की कोशिश शुरू हुई। जैसे ही इस की सफाई का काम शुरू हुआ तो कुछ लोगों ने इसे देवी स्थान बनाकर यहां मूर्ति रखने का ऐलान कर दिया। इस को लेकर दोनों पक्षकारो के दरमियान जमकर बहस व विवाद हुआ। इस बात की सूचना कोतवाली और सिटी मजिस्टेªट को दी गयी। सिटी मजिस्टेªट ने मामले की संजीदगी से लेते हुए मौके पर पुलिस फोर्स तैनात कर दी। जिसकी वजह से इस जगह पर मूर्ति रखने का मंसूबा कामयाब नहीं हो पाया।
बतातें चलें कि वक्फ बोर्ड में रजिस्टेªशन के एक साल बाद जीडीए से एक नक्शा मंजूर कराने की कार्यवायी शुरू हुई और सन् 1981 में इसमें कामयाबी भी मिल गयी, लेकिन तमामतर कार्यवायी के बाद जब चंद नौजवान इस जगह को साफ सुथरा करने लगे तो विरोधी पक्ष ने हंगामा शुरू कर दिया और फिर फिरकावाराना झगडे़ को बुनियाद बनाकर पुलिस ने इस जगह को कानूनी प्रावधान 145 के तहत जब्त कर लिया। मस्जिद के पक्षकार ने इसके खिलाफ मुकदमा किया। सन् 1986 मंे इस का फैसला मस्जिद के पक्षकार के हक में आया। जैसे ही यहां कब्जा लेने की कोशिश की गयी तो विरोधी पक्षकार ने एक बार फिर हंगामा शुरू कर दिया और एक बार फिर पुलिस ने इस जगह कोे अपने कब्जें में ले लिया। इस दौरान विरोधी पक्षकार ने जिला जज के यहां से स्टे ले लिया। सन् 1987 में पक्षकार मस्जिद ने जब यहां से अपील जीत कर कब्जा लेने की कोशिश की तो पुलिस ने कानून व शंति व्यवस्था बनाये रखने के नाम पर इसे अपने कब्जे में ले लिया। इस दौरान विरोधी पक्षकार हाईकोर्ट चला गया। जहां बरसों तक मुकदमा चलने के बाद हाईकोर्ट से भी मस्जिद पक्षकार के हक में ही फैसला किया।
इसके मुतवल्ली सैयद तहव्वर हुसैन से जब बात की गयी तो उन्होंने बताया कि हाईकोर्ट से केस जीतने के बाद जगह को हैंडओवर करने के लिए सिटी मजिस्टेªट और कोतवाली को अदालती फैसले की कापी दी गयी लेकिन उन्होंने इस बाबत कोई कार्यवायी नहीं की। इसके बाद हम सिटी मजिस्टेªट के खिलाफ हाईकोर्ट चले गए। सैयद तहव्वर हुसैन के मुताबिक अदालत की सख्ती के बाद सिटी मजिस्टेªट ने कोतवाली पुलिस को अदालत के फेसले के मुताबिक कार्यवायी करने का निर्देश जारी किया। जिसके बाद पुलिस ने दोनों पक्षकारों की मौजूदगी में इसका कब्जा दिलाया। उन्होंने बताया कि इस जगह को रिकार्ड मंे खंडहर दर्ज कर दिय गया था तो इसका दुरूस्त कराने के लिए एसडीएम के यहां 33/39 के तहत दुरूस्तगी का मुकदमा किया गया। जहां से मस्जिद का इंतेखाब दर्ज करके नं. 202 मस्जिद और नं. 201 मस्जिद सहन का फैसला हुआ।
उन्होंने बताया कि मस्जिद की खतौनी मिल गयी है और सारे दस्तावेज के साथ एसएसपी के यहां मस्जिद तामीर के लिए तहफ्फुज और कानून व शांति व्यवस्था बरकरार रखने की दरख्वास्त की गयी लेकिन दोबारा दरख्वास्त करने के बावजूद इस सिलसिले में प्रशासन की ओर से जब कोई कदम नहीं उठाया गया तो मजबूर होकर जिलाधिकारी, एसएसपी, नगर निगम और सिटी मजिस्टेªट को पार्टी बनाकर हाईकोर्ट में एक रिट दाखिल की गयी है। रिटी पर सुनवाई जारी है। उम्मीद हैं कि हाईकोर्ट से फैसला जल्द आ गए और कब्जा मिलने के बाद मस्जिद के तामीर का काम शुरू किया जायेगा।
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