आलिमों के बगैर जंगे-आजादी की चर्चा अधूरi


गोरखपुर। प्रो सीमा अल्वी जामिया मिलिया इस्लामियां में इतिहास की प्रोफेसर है। वह कहती है कि आलिमों की चर्चा बिना इतिहास अधूरा है। कहती है इतिहास और राजनीति एक दूसरे से जुड़े है। राजनीतिक संदर्भ में बदलाव के साथ-साथ इतिहास लेखन का फोकस बदला रहा है। देश की आजादी के बाद धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र राज्य के माॅडल के तहत इतिहास लिखा गया। इसलिए उस इतिहास में परंपरागत धार्मिक बुद्धिजीवियों को हाशिए पर रखा गया। 1857 के विद्रोह के इतिहास में मौलाना आलिम व उनकी राजीनितिक गतिविधि को जगह नहीं मिली। मौलाना फज्ले हक खैराबादी जैसे सैकड़ों धर्मगुरूओं को काला पानी भेज दिया गया। ये वे लोग थे, जिनके पास हिंदुस्तान की आजादी का जज्बा था। यह बताना इसलिए जरूरी है कि आज आम मुसलमानों को जेहाद से जोड़ा जा रहा है। उस समय जेहाद का जो अर्थ था, वह आज नहीं रहा। आज जेहादियों को राष्ट्रविरोधी समझा जाता है। अगर मुसलिम धर्मगुरूओं की राष्ट्रवादी भूमिका के बारे में नहीं बताया जाएगा, तो समाज में गलत संदेश जाएगा। हकीकत यह है कि उस समय का जेहाद ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ था। वह किसी धर्म विशेष के खिलाफ नहीं था।

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